दहेज़ प्रथा पर निबंध: Dowry System Essay in Hindi (Dahej Pratha Par Nibandh)

दहेज-प्रथा पर निबंध (Dahej Pratha Par Nibandh) का चलन आज के समय में काफी अधिक बढ़ता जा रहा है जो बिलकुल भी उचित नहीं है। पुराने समय में लड़की वालों की तरफ से लड़के वालों को उपहार दिए जाते थे जो लड़की को उसके माता-पिता आशीर्वाद के रूप में देते थे। लेकिन आज के समय में हमारी रूढ़िवादी सोच के कारण माता-पिता के आशीर्वाद सवरूप उपहार को देहज प्रथा का रूप दे दिया है। देहज-प्रथा के बढ़ते इसी प्रभाव को लेकर परीक्षा में भी अधिकतर समय देहज प्रथा पर निबंध (Dahej Pratha Par Nibandh) लिखने के बारे में प्रशन पूछ लिया जाता है। नीचे देहज प्रथा निबंध दिए गए हैं जिन्हें आप परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ सकते हैं।

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Dahej Pratha Essay in Hindi 300 Words – दहेज-प्रथा पर निबंध

Essay on Dowry System – दहेज प्रथा निबंध -1 

सदियां बीत जाने के बावजूद, आज भी, नारी शोषण से मुक्तन हीं हो पाई है। उसके लिए दहेज सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है। लडक़ी का जन्म माता-पिता के लिए बोझ बन गया है। पैदा होते ही उसे अपनी ही मां द्वारा जन्में भाई की अपेक्षा दोयम दर्जा प्राप्त होता है। यद्यपि माता-पिता के लिए ममत्व में यह समानता की अधिकारिणी है, तथापि कितने ही उदाह व्यक्ति हों, लडक़े की अपेक्षा लडक़ी पराई समझी जाती है।

दहेज (Dahej) समाज की कुप्रथा है। मूल रूप से यह समाज के आभिजात्य वर्ग की उपज है। धनवान व्यक्ति  ही धन के बल पर अपनी अयोज्य कन्या के लिए योज्य वर खरीद लेता है और निर्धन वर्ग एक ही जाति में अपनी योज्य कन्या के लिए उपयुक्त वर पा सकने में असमर्थ हो जाता है।

धीरे-धीरे यह सामाजिक रोग आर्थिक कारणों से भ्यांकरतम होता चला गया। दहेज के लोभ में नारियों पर अत्याचार बढऩे लगे। प्रतिदिन अनेक युवतियां दहेज की आग में जलकर राख हो जाती हैं अथवा आत्महत्या करने पर विवश होती हैं। समाज-सुधार की नारेबाजी में समस्या का निराकरण सोच पाने की क्षमता भी समाप्त होती जा रही है। दहेज-प्रथा को मिटाने के लिए कठोर कानून की बातें करने वाले विफल हैं।

हिंदू कोड बिल के पास हो जाने के बाद जो स्थिति बदली है, यदि उसी के अनुरूप लडक़ी को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो जाए तो दहेज की समस्या सदा-सर्वदा के लिए समाप्त हो सकती है। पिता अपनी संपत्ति से अपनी पुत्री को हिस्सा देने की बजाय एक-दो लाख रुपए दहेज देकर मुक्ति पा लेना चाहता है। इस प्रकार सामाजिक बुराई के साथ ही नारी के कानूनी अधिकार का परोक्ष हनन भी होता है। अभी तक बहुत कम पिताओं ने ही संपत्ति में अपनी बेटी को हिस्सा दिया है। लडक़ी के इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़े तो उसे प्राप्त होने वाले धन का अधिकांश भाग कोर्ट-कचहरी के चक्कर में व्यय हो जाता है।

यदि गहराई से देखें तो हर सामाजिक बुराई की बुनियाद में आर्थिक कारण होते हैं। दहेज में प्राप्त होने वाले धन के लालच में स्त्री पर अत्याचार करने वाले दोषी हैं, परंतु उसका कानूनी अधिकार न देकर इस स्थिति में पहुंचा देने वाले भी कम दोषी नहीं है।

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दहेज पर विजय पाने के लिए स्त्री को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना आवश्यक है। रूढिग़्रस्त समाज की अशिक्षित लडक़ी स्वावलंबी बनेगी कैसे? दहेज जुटाने की बजाय पिता को अपनी पुत्री को उच्च-से-उच्च शिक्षा दिलानी चाहिए। उसे भी पुत्र की तरह अपने पैरों पर खड़ा करना जरूरी है।

दहेज (Dowry) की ज्यादा समस्या उसी वर्ग में पनप रही है, जहां संपत्ति और धन है। धनी वर्ग पैसे के बल पर गरीब लडक़ा खरीद लेते हैं और गरीब लडक़ी के लिए रास्ता बंद करने का अपराध करते हैं। लडक़े और लडक़ी में संपत्ति का समान बंटवारा विवाह में धन की फिजूलखर्ची की प्रवृत्ति को कम कर सकता है और इस प्रकार विवाह की शान-शौकत, दिखावा, फिजूलखर्ची एंव लेन-देन स्वत: समाप्त हो सकता है।

किसी भी लडक़ी को यदि उसके पिता की संपत्ति का सही अंश मिल जाए तो उसकी आर्थिक हैसियत उसे आत्मबल प्रदान करे और अपने जीवन-यापन का सहारा पाने के बाद वह स्वंय लालची व कू्रर व्यक्तियों से संघर्ष कर सकेगी। आर्थिक पराधीनता और पिता के घर-द्वार बंद होने के कारण लाखों अबलाओं को अत्याचार सहने के लिए बाध्य होना पड़ता है।


Dahej Pratha Essay in Hindi 200 Words – For Class 8,9,10,11,12 and UPSC Exam

Short Essay on Dowry System in Hindi

दहेज-प्रथा (Dowry System) का उदभव कब और कहां हुआ यह कह पाना असंभव है। विश्व के विभिन्न सभ्यताओं में दहेज लेने और देने के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं। इससे यह तो स्पष्ट होता है कि दहेज का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। अब हम यह जान लें कि दहेज कि वास्तविक परिभाषा क्या है दहेज के अंतर्गत वे सारे सामग्रियां अथवा रकम आते हैं जो वर पक्ष को वधू पक्ष के माध्यम से विवाह के प्रक्रिया के दौरान अथवा विवाह के पश्चात प्राप्त होते हैं। इन वस्तुओं की मांग या तो वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से की जाती है या फिर वे अपनी इच्छा से इसे प्रदान करते हैं।

हालांकि दहेज का पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में बोलबाला है। अपितु भारत में यह तो एक भयंकर बीमारी के रूप में मौजूद है। देश का शायद ही ऐसा कोई भाग बचा हो जहां के लोग इस बीमारी से ग्रसित न हों। आए दिन दहेज लेने-देने के सैकड़ों मामले दिखाई देते हैं। जिन व्यकितयों की बेटियां होती हैंए वे अल्प काल से ही दहेज के लिए रकम संग्रह में लीन हो जाते हैं।

इस वजह से समाज का एक बड़ा तबका बेटियों को मनहूस समझता है और प्रतिवर्श देश में ही लाखों बेटियों को लिंग परीक्षण कर समय से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता है। विवाह के पश्चात लड़कियों को दहेज के लिए प्रताडि़त करने के सैकड़ों मामले हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही है। हालांकि सरकार द्वारा दहेज (Dowry) विरोधी अनेक सख्त कानून और सजा का प्रावधान है, अपितु दहेज के मामले घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। देश भर में दहेज के लोभी राक्षसों द्वारा जलाया जा रहा है, मारा जा रहा है और प्रताडि़त किया जा रहा है। दहेज लोभी लोग मानवीयता भूलकर अमानवीय कृत्यों से परहेज नहीं करते।

आज हमारी सरकारों द्वारा लड़कियों के उत्थान व विकास के लिए अनेक योजनाएं चला रही हैं, जिनमें शिक्षा, रोजगार सहित विवाहोपरांत मदद भी शामिल है। यह सब इसलिए ताकि बेटियों के परिवारों को बेटियां बोझ न लगें और लड़कियां आत्मनिर्भर हो सकें। दहेज लेना और देना तो कानून अपराध है ही लेकिन साथ ही इससे संबंधित किसी प्रकार की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं सांस्कृतिक कार्यक्रमों, चलचित्रों आदि के माध्यम से समाज में दहेज के प्रति जागरूकता का आहवान किया जा रहा है।

इन सब के बावजूद हमारे देश से दहेज को मिटाना तभी संभव होगा जब आज कि युवा पीढ़ी यह प्रण करें कि वे दहेज से परहेज करेंगे। युवाओं का यह प्रयास भविष्य में दहेज को नेस्ताबूत कर सकता है। इससे समाज एक बार फिर खुशहाल हो सकेगा और भारत अपना गौरव हासिल कर सकेगा।


Essay on Dowry System in Hindi (Dahej Pratha Essay)

दहेज़ प्रथा पर निबंध – 3

भूमिका- स्वतंत्रता-प्राप्ति के इतने वर्षों के बाद भी हमारा देश जड़ परंपराओं और को कुप्रथाओं का शिकार बना हुआ है। दहेज-प्रथा, सती-प्रथा, बाल विवाह तथा अनमेल विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथाओं के कारण आज भी संसार के सामने हमारे देश का सिर शर्म से झुक जाता है। समय-समय पर अनेक समाज सुधारक इन कुरीतियों को मिटाने का प्रयास करते रहे हैं, परंतु इनका समूल नाश नहीं हो सका। दहेज प्रथा तो दिन प्रतिदिन भयानक रूप धारण करती जा रही है। यूं तो दहेज प्रथा सदियों से चली आ रही है, परंतु इसका आदर्श रूप तो लुप्त हो चुका है। आज तीन अक्षरों का छोटा सा नाम ‘दहेज’ हमारे राष्ट्र के लिए एक सामाजिक कलंक बन चुका है।

दहेज का अर्थ एवं प्रारंभ- दहेज शब्द उर्दू के जहेज शब्द से बना है दहेज का अर्थ है- सौगात अर्थात भेंट। यह प्रथा भारत में कब प्रारंभ हुई, यह कहना तो कठिन है, लेकिन वेदों तक में इस प्रथा के संकेत मिलते हैं। वैदिक-काल में माता-पिता कन्या को विवाह के उपरांत गृहस्थी का सामान दहेज के रूप में देते थे। यह वधू के माता-पिता की ओर से दान कहलाता था। उस समय वर पक्ष की ओर से किसी प्रकार की मांग नहीं रखी जाती थी। उस समय दहेज का आदर्श रूप होता था और यह माता-पिता के प्रेम का प्रतीक था। धीरे-धीरे यह परंपरा रुढ होने लगी और कालांतर में यह एक अभिशाप बन गई। प्राचीन काल में दहेज माता-पिता अपनी इच्छा अनुसार देते थे। उस समय कन्या का माता पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं होता था। दहेज (Dahej) देने और लेने के पीछे प्राचीन भावना और आज की भावना में काफी अंतर आ चुका है।

समाज में नारी का आदर- प्राचीन काल में नारी का समाज में पर्याप्त आदर सम्मान था। परिवार में स्त्री का समुचित मान था। प्रत्येक धार्मिक पर्व व अनुष्ठान में स्त्रियां पुरुषों के साथ भाग लेती थीं। यहां तक कि उच्च परिवारों की स्त्रियों को इच्छा अनुसार वर चुनने की स्वतंत्रता थी। शकुंतला, सीता, अनुसूया आदि स्त्रियों के नाम आज भी सम्मान पूर्वक लिए जाते हैं। अतः प्राचीन काल में है दहेज Dahej) के साथ एक धार्मिक भावना जुड़ी हुई थी। उस समय कन्यादान के साथ-साथ दहेज दक्षिणा के रूप में दिया जाता था और माता-पिता प्रसन्नता पूर्वक दहेज देते थे। परंतु कालांतर में स्त्री की स्वतंत्रता छीन गई। उसे मात्र उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा। कन्या मां-बाप पर बोझ बन कर रह गई। अतः दहेज-प्रथा भी कुप्रथा में परिवर्तित हो गई।

वर्तमान वर्तमान स्थिति- आज समाचार-पत्रों के पृष्ठों को यदि उलट कर देखें तो हमें इस प्रकार के अनेक समाचार मिलेंगे सास ने बहू पर तेल छिड़ककर आग लगा दी, दहेज लोभियों ने बारात लौटाई, स्टॉव फट जाने से नव वधू की मृत्यु अथवा नव-विवाहिता द्वारा आत्महत्या इत्यादि। आखिर इन हत्याओं का क्या कारण है? नवविवाहित युवतियां ही क्यों स्टॉव फटने से मरती हैं, सास क्यों नहीं मरती? यह प्रश्न प्रत्येक प्रबुद्ध पाठक के मन में उठते हैं। इन प्रश्नों का सीधा साधा उत्तर तीन अक्षरों का है अर्थात ‘दहेज’

हजारों वर्षों की पराधीनता और स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों की स्वाधीनता ने वैदिक-काल से चली आ रही इस पावन प्रथा को विकृत कर दिया है। आज कन्या की श्रेष्ठता शील और सौंदर्य से नहीं आंकी जाती, अपितु दहेज से आंकी जाती है। आज समाज में प्रदर्शन की भावना भी बढ़ती जा रही है। अमीर लोग अपनी बेटियों के विवाह में बढ़-चढ़कर दहेज देते हैं। मध्यमवर्गीय एवं गरीब परिवार को देखा देखी अनुकरण करना पड़ता है, भले ही उसके लिए उनको अपना घर गिरवी रखना पड़े। काले धन के प्रसार ने दहेज (Dahej)को अधिक प्रोत्साहन दिया है। निश्चय ही यह एक सामाजिक बुराई है जो समाज की जड़ों को खोखला कर रही है। अधिकाधिक दहेज देने के बावजूद युवतियां दहेज दानव की बलिवेदी हो रही हैं।

एक कवि ने सच कहा है -

कितनी गीता गंगा मां की गोदी में सो जाती है,
कितनी सीता रेल पटरियों पर लहू हो जाती है ,
कौन कुएं में कूद गई, गिरी कौन मीनारों से,
कौन गिरेगा इनकी संख्या रोज रंगें अखबारों से। 

दहेज-प्रथा उन्मूलन विधेयक- इस सामाजिक कुप्रथा के उन्मूलनार्थ वर्ष 1961 में एक कानून पारित किया गया। इस विधेयक के अनुसार वर पक्ष के लोग दो हजार से अधिक रुपए का दहेज (Dowry) नहीं ले सकते। सन् 1975 में इस कानून को अधिक कठोर बनाया गया। सन 1975 में एक और विधेयक पारित किया गया। पिछले कुछ वर्षों में इस संबंध में कड़ी कार्रवाई की गई है। वधूओं की हत्या के मामलों में मृत्युदंड तक की घोषणा की गई है। परंतु जब तक जनता की ओर से इस दिशा में सक्रिय योगदान नहीं मिलेगा तब तक यह विधेयक अधिक सफल नहीं हो सकता। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात तो जनता की मानसिकता को बदलने की है। दहेज-प्रथा (Dahej Pratha)को समाप्त करने के लिए सामाजिक जागरूकता नितांत आवश्यक है। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों को इस काम को सफलता मिली है। लेकिन नगरों में अभी भी स्थिति ज्यों की त्यों है।

युवा शक्ति में जागृति की आवश्यकता- दहेज-प्रथा को समाप्त करने के लिए युवा वर्ग को आगे आना चाहिए। स्कूलों एवं कॉलेजों में इस संबंध में काफी काम किया जा सकता है। युवक-युवतियां ही यदि दृढ़ निश्चय कर लें तो निश्चय ही है कुप्रथा समाप्त हो सकती है। सरकार को दहेज-प्रथा (Dahej Pratha) विषयक को सख्ती से के साथ लागू करना चाहिए और दहेज (Dowry) देने तथा लेने वालों दोनों को दंडित करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त प्रत्येक माता-पिता को अपनी कन्याओं की शिक्षा की ओर समुचित ध्यान देना चाहिए। यदि युवतियां शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो ससुराल में भी उनको आदर की दृष्टि से देखा जाएगा। इसी प्रकार से अंतर्जातीय विवाह को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। अस्तु, माता-पिता की सुख-शांति पर कुठाराघात करने वाला, बालिकाओं के सुख पर तुषारापात करने वाला, आए दिन नव-विवाहिता वधूओं की हत्याओं को प्रोत्साहन देने वाला यह एक सामाजिक कलंक जब तक हमारे देश में विद्यमान है तब तक हम प्रगति के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते।

Dahej Pratha Essay in Hindi PDF

 

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