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Flood Essay in Hindi Language
बाढ़ पर निबंध – 1
मनुष्य के अलावा पृथ्वी पर रहने वाले सभी छोटे-बड़े जीव, पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ आदि सभी का जीवन जल है। जल के बिना सभी मनुष्यों एवं जीव-जन्तुओं की मृत्यु सम्भव है, परन्तु यही जीवन देने वाला जल बाढ़ (Badh) का विकराल रूप धारण करता है, तो यह प्रकृति का एक क्रूर परिहास बन जाता है।
बाढ़ के कारण (Causes of Flood)
बाढ़ (Badh) आने के सामान्य रूप से दो ही मुख्य कारण हैं-एक तो वर्षा का आवश्यकता से अधिक होना तथा दूसरा, किसी भी समय नदी या बांध में दरारें पड़कर टूट जाना। इस कारण चारों ओर जल प्रलय जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है।
पहला कारण प्राकृतिक माना जाता है, जबकि दूसरा अप्राकृतिक। परन्तु दोनों ही स्थितियों में जन-हानि के अतिरिक्त खलिहानों, मकानों तथा पशुधन आदि के नाश के रूप में धन-हानि हुआ करती है।
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कई बार तो ऐसे भयावह, करूण एवं दारूण दृश्य का स्मरण करते भी रोेगटे खड़े हो जाते हैं, जब जल-प्रलय में डूबे रहे मनुष्य, पशु आदि को देखना पड़ता है और वह बच पाने के लिए अपना हर सम्भव प्रयास करता रहता है। ऐसा ही बाढ़ का भयावह, करूण एवं दारूण दृश्य मुझे देखने को मिला। बरसात का मौसम था। चारों ओर कई दिनों से घनघोर वर्षा हो रही थी। इसके कारण नदी-नालों में लबालब पानी भर गया था।
बाढ़ को रोकने के उपाय (Prevention from flood in Hindi)
जब पानी की निकासी का कोई रास्ता नहीं निकला तो आधी रात नालों के द्वारा घरों में भरने लगा। बिजली जलाकर जब हमने देखा तो रात का वह दृश्य बड़ा ही भयावह लग रहा था। चारों ओर गन्ध-ही-गन्ध आ रही थी। हम अपने आपको बचाने के लिए छत पर चढ़े तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे पानी भी हमारा पीछा कर रहा है। जीवन जैसे थमा लगने लगा था। औरतों अपने बच्चों को गोदी में उठाकर भगवान का नाम लेती हुई एक-दूसरे की तरफ देख रही थीं।
उपसंहार–
कुछ समय बाद नावों में सवार होकर स्वंयसेवक आए और हमें वहा से निकालकर ले गए। तब कहीं जाकर हमने चैन की सांस ली और स्वयंसेवकों का शुक्रिया अदा किया। इस भयावह जल प्रलय का दृश्य मैं आज तक नहीं भूला पाया हूँ।
Badh (Flood) Par Nibandh (बाढ़ पर निबंध)
बाढ़ की समस्या निबंध – 2
बाढ़ अर्थात् जल प्रलय। बाढ़ आने का प्राकृतिक कारण वर्षा का ज़रूरत से ज़्यादा होना है। लेकिन कभी-कभी किसी नदी अथवा बाँध में दरार पड़ने से टूटने से तीव्र जल प्रवाह से भी प्रलय के समान स्थितियाँ बन जाती है। यह सोचकर कि बाढ़ में डूब रहे मनुष्यों या जानवरों की उस वक्त मानसिक हालत क्या होती होगी, रोंगटे ही खड़े हो जाते है। डूबने वाला बचनेे के लिए कितना प्रयास करता होगा और अपने हाथ-पैर मारता होगा।
बीते कुछ वर्षो में मुझे बाढ़ (Badh) से बच निकलने और उसकी भयानक स्थिति को देखा। उस दृश्य के बारे में सोचकर ही आज भी मैं सहम जाता हूँ। बरसात का मौसम था और मूसलाधार वर्षा होने की खबरें आ रही थी। दिल्ली में लगातार वर्षा के कारण शहर के और इसके आस-पास के जल-निकासी के लिए बनाये गये सभी नाले लबालब भरे हुये थे। एक दिन हमने देखा कि नालियों का पानी बाहर जाने के बजाय वापिस घरों में आ रहा था। लेकिन इसकी परवाह किये बिना हम यह सोचकर सो गये कि बारिश थमते ही पानी स्वयं ही बारह निकल जायेगा।
लेकिन सभी नालों के भरा होने का कारण पानी घरों में आता रहा और लगभग आधी रात को क्वार्टरों में सब तरफ ‘बाढ़-बाढ़’ का स्वर गूंजने लगा। हमने उठकर देखा तो पानी घुटनों से ऊपर तक भर चुका था। बिजली जाने से चारों तरफ अँधेरा हो गया था। घर का सारा सामान डूब चूका था। चारों ओर पानी का शोर था, जोकि बढ़ता ही जा रहा था।
परिवार के सदस्यों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर दरवाजा खोला तो पानी में गंध आ रही थी। हम सभी पानी के उफान से भीग गये और देखते ही देखते पानी का स्तर कमर से भी ऊपर आ गया। बड़ी मुश्किल से सीढ़ी के माध्यम से हम छत तक पहुँचे। लेकिन जैसे पानी भी हमारा पीछा करते हुए सीढ़ीयाँ चढ़ रहा था।
एक दूसरे की तरफ देखते हुए हम लोेग अन्धेरे में ही छत पर बैठे रहे। हमने देखा कि आस-पास के सभी लोग छतों पर बैठे थे और भगवान का नाम ले रहे थे। सवेरे पौ फटते ही हमने देखा कि कश्तियों में कुछ स्वयंसेवक और सैनिक हमारी ओर आ रहे थे। नावों में सवार लोग अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर आये थे और कुछ समय पश्चात् कुछ हेलीकाॅप्टर सैनिकों से भरे हुए हमारी तरफ आये जो कि बाढ़ में फँसे हुए लोगों को सीढ़ी लगाकर निकाल रहे थे। हम भी उन लोगों के साथ ही बाहर आ गये। वहाँ से निकलने के बाद हमें ननिहाल में कुछ दिनों के लिए रुकना पड़ा। उस बाढ़ (Badh) में गये सामान की भरपाई तो आज तक नहीं हो पाई है। ऐसी होती है बाढ़।
Essay on Flood in Hindi Language
बाढ़ का दृश्य निबंध – 3
बाढ़ भूकंप जैसी ही एक प्राकृतिक आपदा है। ऐसी स्थिति में पानी अपना विनाशकारी रूप धारण कर लेता है। ज्यादा बारिश के कारण जब भूमि की जल संचूषण की शक्ति समाप्त हो जाती है तो उसकी परिणति बाढ़ के रूप में होती है। पहाड़ों से वर्षा जल के साथ हजारों टन मिट्टी बहकर नदियों में आ जाती है। इस कारण नदियों, सरोवरों तथा जलाशयों का तल ऊपर उठने के कारण पानी उसके तटों को लांघता हुआ खेत-खलिहानों, गांवों में फैलना शुरू हो जाता है। पानी की यही स्थिति बाढ़ कहलाती है। बाढ़ का सीधा संबंध जल या भूमि से है।
आज उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सड़कों व इमारतों का जाल सा बिछ गया है। इस कारण मैदान नाममात्र को रह गये हैं और हरित क्षेत्रों में कमी आती जा रही है। वर्षा जल सोखने के लिए जमीन खाली नहीं रह गयी है।
पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण पहाड़ों का मलबा नदियों में ही गिर रहा है। इस कारण उसकी जल सोखने की क्षमता तो कम हो ही रही है साथ ही मलबे का कुछ हिस्सा पानी के साथ बहता हुआ मैदानों की ओर चला जाता है। जहां यह मैदानी भागों में नदियों का तल ऊंचा कर देता है जो ज्यादा बरसात होने पर बाढ़ का सबब बन जाता है। रही सही कसर बड़े बांध पूरी कर देते हैं। इनके जल संचयन की क्षमता निश्चित होती है।
ज्यादा वर्षा होने पर जब इनकी जल संग्रह की क्षमता समाप्त हो जाती है तो उसके पानी की निकासी जरूरी होती जाती है। ऐसा न करने पर उसके आसपास के गांवों व शहरों के पानी में डूबने की संभावना प्रबल हो जाती है। बांध को खतरे से बचाने के लिए उससे पानी नदी में छोड़ा जाता है। इस प्रकार नदियों में बाढ़ आ जाती है। हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों पूर्व आयी बाढ़ का कारण भाखड़ा बांध रहा है।
बाढ़ के समय चारों ओर बचाओ-बचाओ का शोर सुनाई पड़ता है। बच्चे व महिलाएं रोने लगते हैं। मेहनत की कमाई अपने सामने लुटते दिखाई पड़ती है। लाख चाहकर भी वह उसे नहीं बचा पाता। बाढ़ के कारण जहां लोग बेघर हो जाते हैं वहीं उनके पशु, अन्न भंडार आदि भी तबाह हो जाते हैं। बाढ़ की दोहरी मार झेलनी पड़ती है। बाढ़ खत्म होने के बाद जो पानी गड्ढों आदि से भरा रह जाता है और जानवरों के शव आदि सड़ने के कारण वातावरण दूषित हो उठता है। इसके बाद कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं।
लोगों के पास जीवन निर्वहन के लिए कुछ नहीं होता। बड़े-बड़े धन्ना सेठ फकीर हो जाते हैं। बाढ़ के बाद कुछ समय के लिए खेत इस लायक नहीं रह जाते हैं कि उनमें कोई फसल बोई जा सके। इस प्रकार सात-आठ दिन रही बाढ़ के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति वर्षो पीछे चली जाती है।
एक बार मुझे भी बाढ़ की समस्या से दो चार होने का अवसर मिला। मैं उन दिनों लगातार चार दिनों की विद्यालय में पड़े अवकाश के कारण गांव गया हुआ था। गांव पहुंचने पर माताजी ने बताया पिछले कई दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही है। अभी मुझे गांव में रहते दो दिन ही हुए थे कि एक रात को गांव में शोर होता सुनाई पड़ा। लोग चिल्ला रहे थे कि गांव में रामपुर की ओर से तेजी से पानी बढ़ता चला आ रहा है। पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया जब मैंने शोर का कारण माताजी को बताया तो वे बोली बेटा जल्द से जल्द हमें अपना जरूरी सामान संभाल लेना चाहिए क्योंकि दस साल पहले भी गांव में जब बाढ़ आयी थी तो रामपुर की ओर से ही गांव में बाढ़ का पानी घुसा था। उस साल आयी बाढ़ ने गांव के करीब-करीब सभी लोगों को बेघर कर दिया था। आज तो गांव में फिर भी काफी पक्के मकान हो गये हैं।
हम लोग अभी बात कर ही रहे थे कि जोरों की बरसात फिर शुरू हो गयी। ऐसे में सामान को सुरक्षित जगह पर ले जाना भी जरूरी था। पिताजी अस्वस्थ थे सो मुझे ही सारा सामान किसी सुरक्षित जगह पर रखना था। हमारा मकान तिमंजिला था। मैंने सोचा क्यों न सामान जो ज्यादा जरूरी है उसे तीसरी मंजिल पर रख दूं। माताजी ने भी मेरी हां में हां मिला दी। फिर क्या था थोड़ी ही देर में मैंने जरूरी सामान ऊपर ले जाकर रख दिया। सारा सामान को बचाना भी मुश्किल था। वैसे भी बाहर बारिश हो रही थी। कुछ ही देर बाद गांव में मुनादी करवा दी गयी कि लोग अपने घरों की छतों पर चले जाएं कुछ ही देर में गांव में बाढ़ का पानी घुसने वाला है।
हमारे आस-पड़ोस के वे लोग जिनके मकान या तो कच्चे थे या फिर एक मंजिला था। मैंने उन्हें भी अपनी छत पर बुला लिया। हालांकि उनका सभी सामान तो सुरक्षित जगहों पर नहीं रखवाया जा सका क्योंकि गांव में पानी भरना शुरू हो गया था। जो थोड़ा सामान सुरक्षित रखा जा सका वह रखवा दिया गया। हमारे पड़ोस में रहने वाली एक बुढ़िया बाहर की दुनिया से बेखबर अपनी झोपड़ी में ही थी।
उसकी याद सहसा मेरी माताजी को आ गयी। गली में पानी भरने लगा था। मैं किसी प्रकार उस बुढ़िया को उसकी झोपड़ी से बाहर लाया। गली में पानी भरता देख वह मेरे साथ आने को तैयार नहीं थी। ऊपर छत से देख रही मेरी माताजी ने जब उनसे मेरे साथ चले आने को कहा तो वह किसी तरह तैयार हुई। खैर किसी तरह मैं उसे अपनी छत पर ले आया। जब तक मैं वापस फिर उसकी झोपड़ी में पहुंचता उसमें पानी भर चुका था। पूरे गांव में बाढ़ को लेकर हाहाकार मचा हुआ था। थोड़ी ही देर में बारिश ने लोगों पर रहम खाते हुए अपनी तेजी कुछ कम कर दी।
बारिश थमते ही कुछ लोग जो अपना सामान सुरक्षित जगहों पर नहीं रख पाये थे अपनी छतों से उतर कर नीचे आ गये। गलियों में पानी तो आ गया था लेकिन इतना नहीं आया था कि लोगों को आवाजाही में परेशानी हो। कुछ लोगों को मैंने देखा कि अनाज की बोरियों को ट्रैक्टर ट्राली में रख पास ही स्थित एक टीले पर बसे गांव की ओर चल दिए। शायद पहले वहां पहाड़ रहा होगा।
वे लोग अपने साथ बच्चे भी ले जा रहे थे। मेरे ख्याल से वे लोग टीले वाले गांव पहंचे भी नहीं होंगे कि फिर से बारिश शुरू हो गयी। इस पर गांव में एक बार फिर शोर होने लगा। क्योंकि कुछ लोग बारिश कम होने व पानी का बहाव कम होने के कारण छतों से नीचे उतर आये थे। लोगों का भरपूर प्रयास था कि किसी तरह जितना हो सके सामान बर्बाद होने से बच जाए तो अच्छा ही है।
कुछ ही देर में गांव की गलियों तथा सड़कों पर करीब दो से ढाई फुट पानी भर चुका था। गलियों व सड़कों के किनारे बने मकानों से पानी की लहरें टकरा रही थी। ऐसे में जो मकान कच्चे थे उनकी दीवार आदि ढह गयी थी। कुछ झोपड़ियों के छप्पर पानी में बह रहे थे। मकान गिरने पर छपाक की आवाज सुनाई देती। पुराने पड़ गये पेड़ भी धीरे-धीरे गिरने लगे। गांव वालों का सारा सामान भी बह गया।
बाढ़ के कारण गांव के वे लोग बेघर हो गये जिनके मकान कच्चे थे। लोगों का घरों में रखा अनाज पानी के कारण सड़ गया था। कुछ लोगों के पशु भी बह गये थे। बाढ़ से मुक्ति तो मिल गयी लेकिन अगले दिन धूप निकलने पर जब सड़ांध उठी तो लोगों का जीना दूभर हो गया। गांव में कई बीमारियां अपने पैर पसारने लगी।
सरकार की ओर से सफाई आदि करवायी गयी। बेघर हो चुके लोगों की तंबुओं में रहने की अस्थायी व्यवस्था की गयी। सरकार की ओर से उन्हें घर बनाने के लिए आसान किस्तों में ऋण दिया गया। गांव में शिविर लगाकर लोगों को गांव में रोगों के उपचार की सुविधा उपलब्ध करायी गयी। इनके अलावा कई स्वयंसेवी संगठनों ने भी बाढ़ पीड़ितों की जो मदद हो सकती थी की।
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