Essay on Women Empowerment in Hindi
Women Empowerment Essay – आज की हमारी पोस्ट का विषय रहेगा महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Essay on Women Empowerment). हिंदी निबंध लेखन के अन्य विषयों की तरह यह विषय भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण है और परिक्षीयों में अधिकतर बार पूछ लिया जाता है। महिला सशक्तिकरण निबंध (mahila sashaktikaran nibandh) होने के साथ साथ एक सामाजिक महत्वपूर्ण विषय भी है जिसे हम सभी को महिलाओं के उत्थान के लिए जानना जरुरी है। इसलिए दोनों पहलुओं को देखते हुए महिला सशक्तिकरण (mahila sashaktikaran) की महत्वता और अधिक बढ़ जाती है जिसके कारण हमारा इसे जानना और अधिक जरुरी हो जाता है।
निबंध शुरू करने से पहले नीचे कुछ महत्वपूर्ण विस्तार बिंदु दिए गए है, जिन पर हम निबंध के माध्यम से विस्तार से चर्चा करने वाले है। परीक्षा के दौरान आप इन सभी बिंदुओं को शीर्षक के आधार पर निश्चित रूप प्रयोग कर सकते है ताकि समझने में और अधिक आसानी हो। किसी भी समाज का स्वरूप वहां की महिलाओं की स्तिथि एवं दशा पर निर्भर करता है। जिस समाज में महिलाओं की स्थिति सुढृढ़ और सम्मानजनक होगी, वह समाज भी सुढृढ़ और मजबूत होगा। यदि देखा जाए तो आधुनिक काल की अपेक्षा प्राचीन भारतीय समाज में महिलाओं की स्तिथि अधिक ढृढ़ थी, उन्हें पुरषों के समान अधिकार भी प्राप्त थे तथा समस्त सामाजिक-धार्मिक कार्य-कलापों में उनकी सहभागिता अनिवार्य थी। गार्गी, अपाला, विधोत्तमा जैसी विदुषी नारियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। कालांतर में भारत पर होने वाले लगातर वेदशी आक्रमणों के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई और वर्तमान में स्तिथि यह है कि हम महिलाओं के सशक्तिरण पर चर्चा कर रहें है। अर्थात जो नारी स्वयं में शक्तिस्वरूपा है, अन्नपूर्णा है, सृष्टि का प्रमुख आधार है, उसके सशक्तिकरण पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। यही तथ्य स्वयं में उसकी हाशमान स्तिथि का घोतक है। इन्हें भी पढ़ें – वस्तुतः भारत का सामाजिक ढांचा ही महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रथक प्रथक भूमिकाओं का निर्धारण करता है, जिसके दुर्भाग्यपूर्ण परिणामस्वरूप वर्तमान में प्रत्येक स्तर पर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। आज अमेरिका सहित विश्व का कोई भी राष्ट्र यह दावा कर पाने में सर्वथा असमर्थ है कि उसके यहां किसी भी रूप में महिलाओं का उत्पीड़न नहीं किया जाता। वर्तमान में महिलाएं तृतीय विश्व की भांति हैं, जहां उनके अधिकार सीमित और कर्तव्य असीमित है। लंबे संघर्ष के पश्चात भारतीय महिलाओं ने समाज में अपनी स्थिति में सुधार ला पाने और समाज में अपना कुछ स्थान बनाने में सफलता अर्जित की है। महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन दृष्टिगत हो रहे हैं, किंतु इन परिवर्तनों की गति काफी अधिक धीमी है। महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रश्न ही सामाजिक न्याय, लोकतंत्र एवं समेकित सामाजिक विकास के दर्शन पर आधारित है। सशक्तीकरण वह बहु आयामी प्रक्रिया है, जो कि महिलाओं में सामाजिक आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करने की क्षमता का पर्याप्त विकास करने का प्रयत्न करते हैं। सशक्तिकरण से अभिप्राय शक्ति का अधिग्रहण मात्र नहीं है, अपितु इसके द्वारा उनमें शक्ति के प्रयोग की क्षमता का समुचित विकास किया जाता है। महिलाओं को सामाजिक हाशिए से हटाकर समाज की मुख्य धारा में लाना, निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना, उनमें पराश्रितता की भावना और हीन भावना को समाप्त करना है सशक्तिकरण है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष 1 लाख 25 हजार महिलाएं गर्भधारण के कारण अथवा बच्चों के जन्म के समय मृत्यु का शिकार बन जाती है। प्रतिवर्ष जन्म लेने वाली एक करोड़ बीस लाख लड़कियों में से 30% लड़कियां अपना 15 वां जन्मदिन देखने के लिए जीवित नहीं रह पाती। 72% गर्भवती ग्रामीण महिलाएं निरक्षर है। कक्षा एक में प्रवेश लेने वाले प्रत्येक दस लड़कियों में से केवल छह लड़कियां ही कक्षा पांच तक पहुंच पाती हैं। वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व में काम के घंटों में 60% से अधिक का योगदान महिलाओं का होता है, फिर भी, वे मात्र 1% संपत्ति की ही मालिक हैं। आंकड़ें स्पष्ट करते हैं कि महिलाएं एक दिन पर पुरुषों से छह घंटे अधिक कार्य करती हैं। इसके पश्चात भी उन्हें महत्वहीन समझा जाता है। पचास प्रतिशत कामकाजी महिलाएं कार्यस्थल पर उत्पीड़न का शिकार होती हैं। 1996 में अंतर संसदीय परिषद द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 100 देशों में 10 प्रतिशत राजनीतिक दलों का ही नेतृत्व महिलाएं करती हैं। विकसित देशों की लोकतांत्रिक संस्थाओं में भी महिलाओं को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। देश में स्त्री पुरुष साक्षरता एवं लिंग अनुपात पर दृष्टिपात करने पर यह ज्ञात होता है कि, देश में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों के कारणों में प्रमुख हैं – धर्म, जाति, वर्ग, पारिवारिक संरचना, विवाह-पद्धति, नातेदारी, औद्योगिकरण, नगरीकरण, पाश्चात्य शिक्षा एवं संस्कृति, आधुनिकरण, बढ़ता उपभोक्तावाद, आदि। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारत के संविधान में अनुच्छेद-14 के अंतर्गत स्त्री-पुरुष समानता पर चर्चा की गई। हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1956 , हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 के माध्यम से जहां महिलाओं को सामाजिक अधिकार प्रदान किए गए वही हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम उनसे 56 द्वारा उसे संपत्ति का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त उसके आर्थिक अधिकारों के साथ-साथ उसके सम्मान को सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से 1948 में फैक्ट्री अधिनियम तथा 1976 में समान श्रमिक अधिनियम बनाए गए। समाज के सभी वर्गों की 18 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को, चाहे वह शिक्षित हो अथवा अशिक्षित, पुरुषों के समान मताधिकार प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त महिलाओं के कल्याणर्थ 1961 में दहेज निषेध अधिनियम एवं प्रसूति लाभ अधिनियम, 1986 में अश्लील चित्रण निवारण अधिनियम तथा 2006 में घरेलू हिसा महिला संरक्षण अधिनियम भी पारित किए गए। महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस प्रयास करते हुए सरकार द्वारा 1985 में महिला एवं बाल विकास विभाग के स्थापना तथा 31 जनवरी, 1992 को राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। 1992 से देश में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा। भारत सरकार ने वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष घोषित किया। महिलाओं के कल्याण हेतु सरकार द्वारा उन्हें की योजनाओं एवं कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया गया है, इनमें प्रमुख है महिला समृद्धि योजना, महिला सामाख्या, इंदिरा महिला योजना, बालिका समृद्धि योजना, स्वयंसिद्धा योजना। आदि सरकार द्वारा महिला उत्थान की दिशा में किए गए इतने प्रयासों के पश्चात भी भारतीय समाज में महिलाओं की दशा सोचनीय है। कन्या आज भी अधिकांश भारतीय घरों में अनचाही संतान है। यही पसंद नापसंद लैंगिक भेदभाव का सर्व प्रमुख कारण है, जो कि परिवार के स्तर से आरंभ होकर महिलाओं के प्रति हिंसा को प्रोत्साहित करते हैं। उन्हें समाज में पुरुषों के समान अधिकार एवं स्वतंत्रता का उपभोग करने से रोकती है। इसके अतिरिक्त समाज में महिलाओं की दुर्दशा का एक अन्य प्रमुख कारण सरकारी योजनाओं का उचित क्रियान्वयन न होने के कारण अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति में होना है। यह कहा जाता है कि महिलाओं के बदतर स्थिति के लिए अकुशल प्रबंधन के साथ साथ समाज भी समान रूप से दोषी के उत्तरदायी है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों को सफल बनाने हेतु यह आवश्यक है कि, समाज की मानसिकता, विशेषतः स्वयं स्वयं महिलाओं की मानसिकता, में परिवर्तन लाया जाए। समाज महिलाओं को मात्र महिला की दृष्टि से न देखें अपितु उसे एक मनुष्य माने तथा महिलाएं भी स्वयं को अबला नहीं सबला समझे। इस दिशा में गैर सरकारी संगठन अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं। इसके साथ ही महिलाओं की स्थिति को नीचा बनाने वाली सामाजिक परंपराएं समाप्त की जानी चाहिए, महिलाओं को साक्षर बनाने की दिशा में ठोस प्रयास किए जाने चाहिए, महिलाओं की गरिमा का सम्मान किया जाना चाहिए, उत्पीड़ित महिलाओं को सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा पर्याप्त सहायता दी जानी चाहिए तथा महिलाओं के लिए स्वरोजगार योजनाओं आदि को प्रदान किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समय-समय पर आयोजित होने वाली संघोष्ठियों एवं सम्मेलनों में महिला सशक्तिकरण संबंधी विचारों से इस तथ्य को बल प्राप्त होता है कि वह वर्तमान समाज की आवश्यकता है, किंतु मात्र लंबे-चौड़े भाषणों और वाद-विवादों मात्र से महिलाओं का उत्थान संभव नहीं है। इसके लिए समाज को महिला सशक्तिकरण के पौधे को अपने प्रयासों रूपी जल से सींचना होगा, महिलाओं को उनकी खोई हुई प्रतिष्ठा एवं सम्मान उन्हें पुनः लौटना होगा, इन सबसे ऊपर नारी को अपने अस्तित्व, अपने ‘स्व’ की पहचान बनानी होगी। जिस दिन ऐसा होगा उसी दिन महिला सशक्तिकरण का लक्ष्य भी प्राप्त हो जाएगा। छायावादी कवि पंत ने तो नारी को देवी माँ सहचरि, सखी प्राण कहकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं और उन्होंने अपने शब्दों में लिखा है- जैसा जैसे आदर्श उद्घोष से नारी का सम्मान किया है। नारी सृष्टि का प्रमुख उद्गम स्त्रोत है। नारी के अभाव में समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। सृष्टि सर्जन से ही नारी का अस्तित्व रहा है। देव से लेकर मानव तक नारी ही जन्मदात्री रही है। बिना नारी के पुरुष अधूरा है। नारी के अभाव में घर-घर नहीं होता। चारदीवारी से घिरा घर-घर नहीं कहा जाता। नारी का प्रमुख आधार है। विश्व में नारी का महत्व क्या रहा है यह तो एक विचारणीय विषय है। इस पर एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। मानव सृष्टि में पुरुष और नारी के रूप में आदिशक्ति ने दो है पूर्व शरीरों का सर्जन किया है। एक के बिना दूसरा अपंग है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अथवा समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। पुरुष को सदैव से शक्तिशाली माना जाता रहा है और स्त्री को अबला नारी। यही कारण है कि नारी को बेचारी अबला आदि है कर पीछे छोड़ दिया जाता है। नारी को तो अर्धांगिनी कहा जाता है, किंतु पुरष रूपी समाज का ठेकेदार अपने को अर्धांग कहने से कतराता है। किसी भी ग्रंथ में पुरुष को अर्धांग कहकर परिचय नहीं कराया गया है जो नारी के महत्व को कम करता है। एक प्रश्न विचारणीय है “यदि नारी अर्धांगिनी है तो उसका अर्धांग कहां?” उत्तर में पुरुष ही समझ में आता है। जो महत्व नारी का समाज में होना चाहिए वह महत्व पुरष समाज में नारी को नहीं मिल पाता। आज के युग में नारी वर्ग को कोई सम्मान नहीं दिया जा गया है। आज नारी के साथ द्रौपदी की तरह व्यवहार हो रहा है। नारी को इस संसार रूपी जगत में कौरवों रूपी दानव ने कुचल दिया है। उसका घोर अपमान किया है और उसको नारी का महत्व नहीं दिया। नारी द्वापर काल से ही पीड़ित चली आ रही है। मत्य और नवीन युग में आकर स्थिति और बिगड़ गई। समाज में उसकी पीड़ा का कोई उपचार नहीं। नारी ने पुरुष की तुलना में जो अंतर पाया उसी को अपनी दयनीय स्थिति का कारण मान लिया। उसके मन में भावुकता अधिक समय तक टिक सकी। उसने अपने को मार्ध मानने के अतिरिक्त शेष हुतलिता मानने का निश्चय कर लिया। उसने अपने शील का परित्याग नहीं किया, किंतु बहाया जगत से कठोर संघर्ष करने का निश्चय कर लिया। नारी ने कभी शील का परित्याग नहीं किया, किंतु सर्वत्र कठोर संघर्ष करने का निश्चय कर प्राचीन काल से ही आंदोलन करती चली आ रही है। रमना, लीलावती, अमयार तथा गार्गी की कथाएं किसी से छिपी नहीं है। स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने सिद्ध कर दिया कि आज भी नारी सब प्रकार से पूर्ण शक्तिशाली है, किसी पुरुष से कम नहीं। कुछ साहित्यकारों ने नारी को महत्व प्रदान करने का प्रयास किया, किंतु मनुष्य ने उसे मात्र मनोरंजन की वस्तु मानकर उसके साथ अन्याय किया। पुरुष ने साहित्यकारों को महत्व प्रदान नहीं किया। वेदों और पुराणों में नारी को महत्व प्रदान किया गया है। वेद-पुराणों में लिखा है कि नारी (पत्नी) के बिना कोई भी यज्ञ एवं स्वर्णमयी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। मानसा प्रेमी यह भली-भांति जानते हैं कि भगवान राम को भी सीता का परित्याग करने पर अश्वमेघ यज्ञ में सीता की स्वर्णमयी प्रतिभा बनानी पड़ी थी। कितनी बड़ी विडंबना है, साथ ही धोखा भी की जिस पुरुष का सर्जन सदैव है उसे गिराने का उपक्रम करता रहता है। उसे इतने से भी संतोष नहीं होता तो अपनी शक्ति का अनुचित प्रयोग करता है। उससे अनुचित कृत्य कराता है। यहां तक कि उसके प्राण लेने से भी नहीं चूकता। इस प्रकार के अत्याचारों को रोकना होगा। स्त्री तो साक्षात ममता की मूर्ति है। वह असहाय नहीं है। उसका चंडी रूप उसकी रक्षा के लिए पर्याप्त है। स्वातंत्र्योत्तर नारी की स्थिति स्वातंत्र्योत्तरभारत में निश्चित रूप से नारी की स्थिति में आशातीत बदलाव हुआ है। नगरों में विशेष रूप से वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक दिखाई दे रही हैं। आज उनका कार्यक्षेत्र भी घर की संकुचित चारदीवारी से बाहर जा पहुंचा है। वे दफ्तरों, होटलों, अदालतों, शिक्षा, संस्थाओं एवं संसद में भी एक अच्छी संख्या में दिखाई पड़ रही है। महिला अधिकारों के प्रति समाज भी सचेत हो रहा है। पहले जहां उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती थी, वहीं आज जागरूक मीडिया से उन्हें सहायता मिल रही है। महिला मुक्ति आंदोलन तक वह सीमित नहीं रह गई है अपितु उनमें हर क्षेत्र में जागरूकता आई है। उनका कार्यक्षेत्र बदला है और अब परिवार में उनकी बात का भी वजन बढ़ा रहा है। वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही है, उनका भी अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहचान है और कहीं-कहीं तो वे पुरुष को पीछे छोड़ कर परिवार की कर्ता बन रही है, जो कि नारी सशक्तिकरण का एक जीता जागता उदाहरण भी समाज के सामने बन रही है। Mahila Sashaktikaran par Bhashan- सभी महानुभावों और मेरे प्यारे दोस्तों को सुप्रभात, जैसा कि आप सभी इस कार्यक्रम को मनाने के लिए यहाँ एकत्र हुए है, तो इस अवसर पर मैं भारत में महिला सशक्तिकरण के विषय पर भाषण देना चाहूँगा/चाहूँगी। लैंगिक समानता लाने के लिए भारत में महिला सशक्तिकरण बहुत आवश्यक है या फिर हम ये कह सकते हैं कि लैंगिक समानता महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत आवश्यक है। हमारा देश अभी भी एक विकासशील राज्य है और देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है क्योंकि ये पुरुष प्रधान राज्य है। पुरुष (अर्थात् देश की आधी शक्ति) अकेले घूमते हैं और वो महिलाओं को केवल घर के कामों को करने के लिए मजबूर करते हैं। वो ये नहीं जानते कि महिलाएं भी इस देश की आधी शक्ति है और पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने से देश की पूरी शक्ति बन सकती है। एक दिन जब देश की पूरी शक्ति काम करना शुरु कर देगी, तो कोई भी अन्य देश भारत से अधिक शक्तिशाली नहीं होगा। पुरुष ये नहीं जानते कि भारतीय महिलाएं कितनी शक्तिशाली हैं। ये सभी भारतीय पुरुषों के लिए बहुत आवश्यक है कि वो महिलाओं की शक्ति को समझे और उन्हें स्वंय को आत्मनिर्भर और देश व परिवार की शक्ति बनाने के लिए आगे बढ़ने दें। भारत में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए लैंगिक समानता पहला कदम है। पुरुषों को ये नहीं सोचना चाहिए कि महिलाएं केवल घर व परिवार के कामकाज को करने या लेने के लिए जिम्मेदार है। पुरुषों को भी घर, परिवार और अन्य उन कामों को करने के लिए भी जो महिलाएं करती हैं, अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए ताकि महिलाओं को खुद के और अपने कैरियर के बारे में सोचने के लिए कुछ समय मिल सके। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए बहुत से कानून है हालांकि, कोई भी बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं है और न ही लोगों के द्वारा उनका पालन किया जाता है। यहाँ कुछ प्रभावशाली और कड़े नियम होने चाहिए जिनका सभी के द्वारा अनुसरण किया जाये। ये केवल हमारी सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है, ये प्रत्येक और सभी भारतीयों की जिम्मेदारी है। प्रत्येक भारतीय को महिलाओं के प्रति अपनी सोच बदलने और महिला सशक्तिकरण के लिए बनाये गए नियमों का कड़ाई से पालन करने की आवश्यकता है। केवल नियम कुछ नहीं कर सकते, बल्कि नियमों के विषयों को समझने की भी आवश्यकता है कि, नियम क्यों बनाये गए हैं, हमारे देश के लिए महिला सशक्तिकरण क्यों आवश्यक है और अन्य सवालों को भी समझने की आवश्यकता है। इन पर सकारात्मक रुप से सोचने की जरुरत है, महिलाओं के बारे में अपनी सोच को बदलना जरुरी है। महिलाओं को पूरी स्वतंत्रता देने की आवश्यकता है, ये उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। महिलाओं को भी अपनी पूर्वधारणाओं को बदलने की जरुरत है कि वो कमजोर हैं और कोई भी उन्हें धोखा दे सकता है या उनका प्रयोग कर सकता है। इसके बजाय उन्हें ये सोचने की आवश्यकता है कि उनमें पुरुषों से अधिक शक्ति है और वो पुरुषों से बेहतर कर सकती हैं। वो योग, मानसिक कला, कूगं-फू, कराटे आदि को अपने सुरक्षा मानकों के रुप में सीखकर भी शारीरिक रुप से शक्तिशाली हो सकती हैं। देश में विकास को आगे बढ़ाने के लिए महिला सशक्तिकरण बहुत महत्वपूर्ण यंत्र है। ये परिवारों और समुदायों के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार करने के साथ-साथ अगली पीढ़ी को बेहतर मौके प्रदान करके गरीबी को कम करने में मदद कर सकता है। भारत में महिलाओं के पिछड़ेपन के बहुत से कारण है जैसे लिंग आधारित हिंसा, प्रजनन स्वास्थ्य विषमताएं, आर्थिक भेदभाव, हानिकारक पारंपरिक प्रथाएं, असमानता के अन्य व्यापक और नियमित रुप। भारत में महिलाएं, मानवीय आपदाओं, विशेष रूप से सशस्त्र संघर्ष के दौरान और बाद में प्राचीन समय से ही बहुत सी कठिनाइयों को झेल रही हैं। महिला सशक्तिकरण का समर्थन, नीति निर्माण को बढ़ावा देने, लिंग संवेदनशील डाटा संग्रह को बढ़ावा देने, महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता में सुधार लाने और जीवन में अपनी स्वतंत्रता का विस्तार करने के लिए बहुत से निजी और सरकारी संगठन और संस्थाएं है। इस तरह समर्थन करता और मानव अधिकारों के बावजूद, महिलाएं अभी भी आश्रित, गरीब, अस्वस्थ्य और अशिक्षित हैं। हमें इसके पीछे के कारणों के बारे में सोचकर और तत्काल आधार पर सभी को हल करने की जरूरत है। धन्यवाद। Related Search Terms- Women Empowerment Essay in Hindi – महिला सशक्तिकरण निबंध
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