Paropkar Par Nibandh | परोपकार पर निबंध | Essay on Paropkar in Hindi

essay on paropkar in hindi in 100 words

Essay on Paropkar in Hindi in 100 Words

परोपकार : निबंध (100 शब्द)

परोपकार (Paropkar) को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। व्यास जी ने परोपकार को अठारहों पुराणों का निचोड़ बताया है। अपनी भलाई के बारे में तो हर कोई सोचता है, महान वही है जो दूसरों की भलाई सोचता है। वही बड़ा है जो सारे संसार को खुश देखना चाहता है। अपने पड़ोसियों, अपने समाज को खुशहाल और प्रसन्न देखने वाला परोपकारी होता है। वह अपनी हित-चिंता के साथ-साथ दूसरों की हित-चिंता भी करता है। वह समाजोपयोगी कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। वह जनकल्याण के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहता है। परोपकार वह गुण है जिसे अपनाकर व्यक्ति को मानसिक सुख एवं संतुष्टि प्राप्त होती है। समाज परोपकारी व्यक्ति को युगों-युगों तक याद रखता है, संसार उसकी जय-जयकार करता है। इसलिए हमें परोपकार के गुण को धारण करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

Essay on Paropkar in Hindi Language

परोपकार पर निबंध

प्राचीन भारतीय ग्रंथ पुराणों में भी परोपकार को पुण्य प्राप्ति का साधन बताया गया है। किसी की निस्वार्थ और आत्मत्याग द्वारा की गयी भलाई ही परोपकार कहलाती है। कहा जाता है कि इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि परोपकारी मनुष्य अपना और पराये का भेद नहीं करता। समाज में रहते हुए हम कहीं न कहीं एक दूसरे पर निर्भर अवश्य रहते हैं। वैसे भी मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। आचार्य चाणक्य का कहना था कि-जिनके हृदय में हमेशा परोपकार (Paropkar) करने की भावना रहती है, उनके समक्ष विपत्तियाँ नहीं फटकती। पग-पग पर उन्हें सफलता हाथ लगती है। सूर्य, नदी, चन्द्रमा, वृक्ष, वायु आदि परोपकारी ही तो हैं। प्रकृति प्रदत्त सभी तत्व परहित के लिए समर्पित हैं। उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं होता।

परोपकारी मनुष्य यह सुकर्म नि: स्वार्थ और आत्म त्याग के द्वारा करता है। समाज में वह प्रत्येक कार्य अपना ही समझकर करता है। इसलिए उसका यह कार्य सच्चाई और निष्ठा से आरम्भ होकर कर्तव्यनिष्ठता और सत्यता के साथ सम्पन्न होता है। उसके द्वारा किये गये कार्यों से समाज में सुख और शान्ति की स्थापना होती है। परोपकारी व्यक्ति समय की सबसे बड़ी आवश्यकता और अपेक्षा के प्रतिनिधि होते हैं। क्योंकि उन्हें जीवन की तनिक भी परवाह नहीं होती और वे आत्म बलिदान में जुटे रहते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-“परहित सरिस धर्म नहीं भाई”

अर्थात् दूसरे की भलाई करने के समान कोई धर्म नहीं है। मानव ही नहीं प्राकृतिक नियमों तथा प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं में भी हमें परोपकार देखने को मिलता है। प्रकृति प्रदत्त चंद्रमा जहाँ शीतलता और प्रकाश देता है वहीं सूर्य प्रकाश, ऊष्मा तथा जीवों को जीवन देता है। पेड़-पौधे अपना सब कुछ न्यौछावर कर प्राणी मात्र का भला करते हैं। नदियाँ अपना जल देकर सभी प्राणी को जीवित बनाये रखती हैं। प्रकृति प्रदत्त इन परोपकारी तत्वों के कारण ही मानव निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है। भारतीय संस्कृति में सूर्य, चंद्रमा, जल आदि को इसीलिए देवतुल्य मानकर उनकी पूजा का वर्णन मिलता है। मानव भी ईश्वर द्वारा ही रचा गया है। इसलिए वह परोपकार में पीछे कैसे रह सकता है। यदि वह परोपकार करना छोड़ दे तो यह संसार पशुवत् हो जायेगा। मानव व पशु में कोई अन्तर नहीं रह जायेगा।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने परोपकार व परोपकारी की इस प्रकार व्याख्या की है-

मरा वही नहीं कि जो जिया न आपके लिए।
वही मनुष्य है कि जो, मरे मनुष्य के लिए॥

परोपकार करते हुए मानव को कष्ट भी सहना पड़ता है। कष्ट सहने के बावजूद परोपकारी एक अलग प्रकार का सुख महसूस करता है। उसे आत्मसंतोष मिलता है। उसकी आत्मा प्रसन्न होती है। परोपकारी व्यक्ति हमेशा सहानुभूति का पात्र बनता है। परोपकार करते समय पात्र और उसकी पवित्रता जांचना ज़रूरी है। यदि जिसे मदद की आवश्यकता नहीं है उसकी मदद की जाए तो यह परोपकार (Paropkar) नहीं कहलाएगा।

परोपकारी मनुष्य अपनी शक्ति और सामर्थ्य के उचित प्रयोग द्वारा परोपकार करते हुए वह प्रेरणादायक कार्यों को ही चुनता है। उसके द्वारा किये गये कार्य से सामूहिक कल्याण की झलक देखने को मिलती है। दीन दखियों, घायलों, अपंगों, अनाथों तथा विभिन्न अवसरों और स्थानों की स्थापना कर परोपकारी मानव कल्याण में अपना जीवन बिता देते हैं। कुएँ, धर्मशाला आदि बनाने का कार्य परोपकारी ही करते हैं।

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समय के साथ-साथ परोपकार की परिभाषा व मापदंड बदलते जा रहे हैं। जनता के सेवक कहलाने वाले नेता सिंहासन पर विराजमान हैं। उनकी कथनी व करनी में जमीन आसमान का फर्क है। वे कहते कुछ हैं करते कुछ हैं। आजकल लोगों में परोपकार (Paropkar) की भावना देखने को नहीं मिलती। उदाहरण के लिए सड़क किनारे यदि कोई व्यक्ति दर्द से कराह रहा हो तो वह भगवान भरोसे ही पड़ा रहता है। सड़क पर से गुजर रहा हर व्यक्ति उसकी ओर देखेगा अवश्य लेकिन उसकी मदद के लिए आगे कोई नहीं आएगा। हाँ यह ज़रूर है कि उसके पास जो नकदी या सामान है उस पर लोगों की नजर अवश्य रहेगी। मौका पाते ही उसे उड़ाने की फिराक में अवश्य रहेंगे।