Prod Shiksha Par Nibandh (Prod Shiksha Aaj KI Avashyakta Par Nibandh)
प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध
Prod Shiksha Essay in Hindi – संसार एक खुली पाठशाला है और उसमें हर व्यक्ति शिक्षार्थी है। वह इसलिए कि शिक्षा मनुष्य को सत्य की पहचान कर पाने में समर्थ ज्ञान की आंख प्रदान करती है। वासतविक शिक्ष्ज्ञा हमारी सोई शक्तियों को जगाकर उन्हें कार्य रूप में परिणत करने की क्षमता और प्रेरणा भी प्रदान करती है। यों भारतीय मनीषियों के मत में आयु-विभाग के पहले 25 वर्ष शिक्षा के लए उपयुक्त स्वीकारे जाते हैं, पर बुद्धिमानों का कहना और मानना है कि वह जब और जहां भी मिले, गनीमत, आगे बढक़र उसका स्वागत करना चाहिए। पर आज के भारतीय जन-मानस ने इस सत्य को बड़ी देर से समझा है। नासमझी के कारण ही यहां आज भी सभी युवा-वर्ग के लोगों में अशिक्षितों की भरमार है। फिर भी अब शिक्षा का महत्व और आवश्यकता को भली प्रकार से समझा जाने लगा है। नगर-गांव सभी स्तारों पर हो रहा शिक्षा-विस्तार यहां तक कि प्रौढ़ आयु के लोगों की साक्षर-शिक्षित बनाने के लिए किए जा रहे प्रयत्न इस तथ्य का सबल र्आर प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
प्रौढ़ पकी हुई आयु वाले पैंतीस-चालीस से ऊपर की आयु वाले व्यक्ति को कहा जाता है। पर हम यहां उन सभी व्यक्तियों को प्रौढ़ कह सकते हैं, जिन्होंने शिक्षा की आयु 25 वर्षो तक इसकी उपेक्षा की, किंतु अब इसका महत्व समझकर, पश्चाताप से भरकर शिक्षा पाने की प्र्रवृत होने लगे हैं। कहा जा सकता है कि बूढ़े तोते आज की परिस्थितियों में शिक्षा की आवश्यकता और महत्व समझकर पढऩे लगे हैं। इनके लिए की गई शिक्षा की विशेष प्रकार की व्यवस्था ही प्रौढ़ शिक्षा कही जाती है। प्रौढ़ शिक्षा (Prod Shiksha) का वास्तविक उद्देश्यय साक्षरता का प्रचार-प्रसार कर उन लोगों को भी समय की रफ्तार के साथ जोडऩे का प्रयत्न करना है, जो किसी कारणवश निरक्षर और अशिक्षित रहकर पिछड़ गए हैं।
आज के प्रगतिशील युग में कोई भी व्यक्ति अशिक्ष्ज्ञित रहकर समय के साथ चल पाने में एक कदम भी सफल नहीं हो सकता। व्यक्ति गांव या शहर जहां कहीं भी रहता है, वह पूरे देश, समाज ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य सभी के साथ शिक्षा के बल पर ही जुड़ सकता है। देश-विदेश में जो तरह-तरह की प्रगतियां हो रही हैं, सभी की उन्नति और विकास की योजनांए चल रही हैं, साधन और उपकरण सामने आ रहे हैं, अशिक्षित व्यक्ति या तो उनसे अपरितचत रहकर लाभ नहीं उठा पाता, या दूसरों के चंगुल में फंसकर ठगा जाता है। स्वंय को शिक्षित बनराकर ही उस ठगी से बचा और जीवन ठीक से चल सकता है। इन्हीं संदर्भों में शिक्षा का वास्तविक महत्व अब देखा जा सकता और देखा भी जाने लगा है।
प्रौढ़ शिक्षा (Prod Shiksha) इसलिए भी जरूरी है कि अभी तक के अनपढ़ और पिछड़े लोग उसकी आवश्यकता और महत्व समझ, कम से कम अपने बच्चों तथा अगली पीढिय़ों का तो प्रशस्त कर सकें। कोई व्यक्ति किसान है, मजदूर है, बढ़ई, लोहार या और जो कुछ भी है, शिक्षा पाकर वह अपनी योज्य ता बढ़ा अपने धंधों को उन्नत बना सकता है। समय के साथ उसके जीवन के प्रत्येक पल का सदुपयोग हो सकता है। पढऩे-लिखने से जो जानकारियां प्राप्त होती है, उनसे जीवन को उन्नत बनाया जा सकता है। जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चला जा सकता है।
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प्रौढ़ों को शिक्षा पाने के लिए न तो दूर जाना पड़ता है ओर न समय का ही प्रश्न होता है। उनके आस-पास ओर ऐसे समय में इस शिक्षा की व्यवस्था की जाती है कि अपने सभी प्रकार के दैनिक कार्यों से फुरसत पाकर वे थोड़ी लगन और परिश्रम से पढ़-लिख सकते हैं। उनके लिए प्राय: पुस्त पट्टी आदि के साधन भी मुफ्त में जुटाए जाते हैं। प्रौढ़ स्त्रियों के लिए भी दोपहर के फुरसत के समय में शिक्षा की व्यवस्था की गई है। परिवार की नारियों के शिक्षित होना पुरुषों से भी अधिक उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है। वह इसलिए कि घर-परिवार के बच्चों पर उन्हीं का प्रभाव अधिक पड़ा रहता है। स्वंय शिक्षित होकर वे बच्चों को भी पढऩे-लिखने के लिए सरलता से प्रोत्साहित कर सकती है।
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आज सरकार ने नगरों, कस्बों, गांवों आदि में सभी जगह प्रौढ़ शिक्षा-केंद्र स्थापित कर रखे हैं। सभी जगह के प्रौढ़ जन इनका भरपूर लाभ भी उठा रहे हैं। इस प्रयास द्वारा हम लोग निश्चय ही घर-घर में शिक्षा का प्रकाश पहुंचाने-फैलाने में सफल हो सकते हैं। जाने-अनजाने या कारणवश जो लोग शिक्षा नहीं पा सके उन सभी लोगों को इसइ व्यवस्था का लाभ उठाना चाहिए। जहां इस प्रकार की व्यवस्था नहीं भी हो पाई, वहां के लोग सामूहिक स्तर पर जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी को प्रार्थना पत्र देकर सरलता से इसकी व्यवस्था करवा सकते हैं। शिक्षा का मूल्य और महत्व किसी से भी छिपा नहीं है। जो नहीं समझते थे, वे भी आज समझने लगे हैं।
प्रौढ़ समुदाय का अपने घर-परिवार, मोहल्ला, गांव और प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश के भविष्य के हित में यह कर्तव्य हो जाता है कि वे इस व्यवस्था का पूरा लाभ उठांए, ताकि भारत सुशिक्षित होकर उन्नत होने का उचित गर्व कर सके। भावी पीढिय़ां प्रौढ़ों का अनुकरण कर सब प्रकार की समृद्धियां कर सकें। केरल प्रांत ने इस दिशा में आज सारे देश के सामने आदर्श रखा है। काश, शिक्षा-प्रसार की दृष्टि से सारा भारत केरल बन पाता।
Prod Shiksha Ka Mahatva Essay in Hindi
प्रौढ़ शिक्षा का महत्व : निबंध
प्रजातंत्र की मूल भावना ही इस बात पर टिकी होती है कि उसकी जनता कितनी पढ़ी-लिखी, चेतनाशील और दूरदर्शी है। ये सभी विशेषताएँ तभी प्राप्त की जा सकती है, जब राष्ट्र का शिक्षा-स्तर अच्छा हो और उसका लक्ष्य जनोद्धार का हो। संभवतः इसी बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन का कथन ठीक था, “प्रजातंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि हम अपने देशवासियों को शिक्षित करें।” किंतु यह खेद का विषय है कि अपनी निरक्षता और अज्ञानता के चलते जनता की दुर्दम शक्ति भी बौनी साबित हो जाती है और प्रजातंत्र अपने शाब्दिक अर्थ में ही रह जाता है।
विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश होने के बावजूद, भारत में शिक्षितों की संख्या बेहद कम है। अगर सरकारी आंकड़ों पर विश्वास किया जाए, तो आज भी देश में निरक्षरों की संख्या 20 से 25 करोड़ के बीच में है, जबकि इस संदर्भ में स्वयंसेवी संस्थाओं और निजी सर्वेक्षणों के आंकड़ों पर विश्वास करें तो ये संख्या कहीं अधिक है। निरक्षता के कारण आज भी वे समस्याएँ हल नहीं हो पायी हैं, जो अन्य देशों में 20-20 वर्ष पहले हल हो गई थीं। इस संदर्भ में यह कहना भी उचित होगा कि इस समस्या को अल्पकालिक उपायों के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिए दीर्घकालिक कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त देश की जनता आयु अनुपात के आधार पर भी शिक्षा लेने से हिचकिचाती है, इसी दुविधा की समाप्ति हेतु एवं हीनभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से एवं प्रजातांत्रिक भावना को सुदृढ़ करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रौढ़ शिक्षा योजना कार्यक्रम तैयार किया गया, जिसकी सफलता और असफलता को परिस्थितियाँ सुनिश्चित करेंगी।
प्रौढ़ शिक्षा का सीधा-सा तात्पर्य ऐसे निरक्षर लोगों को शिक्षा प्रदान करने का है, जो पारिवारिक हालातों के चलते शिक्षा से वंचित हो गए और आज विभिन्न कार्यों में अपनी छोटी-मोटी भूमिका निभाकर अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं। प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य ऐसे निरक्षर नागरिकों को व्यावसायिक एवं तकनीकी ज्ञान देकर नागरिकता के अधिकारों एवं उसके कर्त्तव्यों का बोध कराना है। एक साक्षर व्यक्ति ही अपने मताधिकार का समुचित प्रयोग कर सकता है। उसी के द्वारा ही प्रजातांत्रिक मूल्यों को समझा जा सकता है और उसी के द्वारा ही प्रजातंत्र में गैर-प्रजातांत्रिक और अप्रासंगिक मूल्यों के मिश्रण को रोककर उसका विरोध किया जा सकता है।
प्रौढ़ शिक्षा के पक्ष में आवाज स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही मुखर नहीं हुई थी, इसके पक्ष में तो अनेक समाज-सेवियों, राजनीतिक-कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई थी, जिसे व्यवहार में स्वतंत्रता के पश्चात ही लाया जा सका, क्योंकि तब इस कार्य के प्रति प्रतिबद्धता तो थी, किंतु आवश्यक स्रोत उपलब्ध नहीं थे। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों का तेजी के साथ प्रचार-प्रसार किया गया। 1949 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राज्य मंत्रियों के एक सम्मेलन में ‘प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम’ की एक पूरी योजना की शुरुआत की। सन् 1950 में ‘शैक्षणिक कारवाँ योजना’ के अधीन गाँव-गाँव में प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया गया। 5 दिसंबर, 1969 को एक ‘प्रौढ़ साक्षरता मंडल’ की स्थापना की गई, जिससे प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया।
पंचवर्षीय योजनाओं में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों को विशेष महत्व दिया गया। पंचवर्षीय योजनाओं में अहम भूमिका निभाने वाले इस प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की उपलब्धियाँ दुर्भाग्य से आशानुरूप नहीं रही। इसी को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने 5 अप्रैल, 1977 को प्रौढ़ शिक्षा संबंधी एक नई नीति की घोषणा की। इस परियोजना को आगे बढ़ाते हुए 2 अक्टूबर, 1979 में प्रौढ़ शिक्षा का एक विराट कार्यक्रम लागू किया गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत देश भर के 10 करोड़ प्रौढ़ों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया। राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रौढ़ शिक्षा पाठ्यक्रम, शिक्षा प्रणाली, शिक्षण केंद्र आदि बातों की ओर विशेष ध्यान दिया गया है।
राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा बोर्ड की स्थापना प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को गतिशील बनाने के लिए की गई है। जिसके सदस्यों के तौर पर केंद्रीय मंत्री और योजना आयोग के अध्यक्ष को चुना गया। इसी योजना को और ज्यादा परिपक्व बनाने के लिए राज्य स्तर पर भी प्रौढ़ शिक्षा बोर्डों की स्थापना की जा रही है, लेकिन फिर भी इसमें अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। प्रशासन के कामकाजों में सुदृढ़ता, संचार साधनों का समुचित विकास, योग्य शिक्षकों की नियुक्ति और वित्तीय मामलों का समुचित प्रयोग और इनकी पारदर्शिता, प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम को आवश्यक सफलता प्रदान करने में सहायक साबित हो सकती हैं।
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