Pustakalaya Par Nibandh | पुस्तकालय पर निबंध | With PDF File

पुस्तकालय पर निबंध (Pustakalaya par Nibandh) हर कक्षा के छात्र के लिए महत्वपूर्ण विषय है। पुस्तकालय का महत्व (Pustakalaya ka Mahatva) और परीक्षा की दृष्टि से विषय की उपयोगिता को समझते हुए आज हम आपके साथ पुस्तकालय पर निबंध (Essay on Library) शेयर करने जा रहें है। पुस्तकालय पर अलग अलग शब्द गणनाओं के आधार पर निबंध लिखे गए है। कक्षा 1,2 व 3 के बच्चों के लिए निबंध को पंक्तियों में लिखा गया है। उम्मीद करते हैं आपको निबंध पसंद आएंगे।

अगर आप पुस्तकालय पर निबंध को पीडीऍफ़ फाइल (Essay on library in Hindi pdf)  में डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप पोस्ट के अंत में दिए गए लिंक के माध्यम से इस पुस्तकालय निबंध को निःशुल्क डाउनलोड कर सकतें है। 

Essay on Library in Hindi | हिंदी निबंध

पुस्तकालय पर निबंध – 1

पुस्तकालय , अर्थात पुस्तकों का विशाल संग्रह या घर। पुस्तकों के आगार या भंडार को, या फिर उस स्थान विशेष को कि जहाँ अनेक विषयों से सम्बंधित सभी प्रकार की पुस्तकें एकत्रित या संकलित रहती है। परिभाषित प्रचलित शब्दावली में पुस्तकालय (Pustakalaya) कहा जाता है। इस प्रकार हम किसी अच्छे पुस्तकालय को युग-युगों के संचित ज्ञान का भंडार भी कह सकते हैं। क्योंकि युग-युगों से मनुष्य जो भी भाव-विचार संंजोता आया है, वे सारे विविध विष्ज्ञयों की पुस्तकों में संचित रहा करते हैं, इस कारण पुस्तकालय को संचित ज्ञान का भंडार कहना उचित ही है।

वहाँ सभी प्रकार की उपयोगी एंव ललित कलां से सम्बंधित पुस्तकें भी तो संकलित रहा करती हैं, अत: उन्हें हम ज्ञान के भंडार के साथ-साथ उपयोगी एंव ललित-कला साहिहत्य का भंडार भी कह सकते हैं। इन तथ्यों के आलोक में पुस्तकालय का महत्त्व (pustakalaya ka mahatva) तो उजागर हो ही जाता है, यह भी पता चल जाता है कि पुस्तकालय कोई निर्जीव वस्तुओं का संग्रहालय नहीं, बल्कि युग-युगों की मानवीय सजीव संवेदनाओं, सोचों और विचारेां का आधारभूत जीवंत संग्रहालय है।

ऊपर जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, उनसे पुस्तकालय की उपयोगिता और लाभ अपने आप ही स्पष्ट है। वहाँ जाकर प्रत्येक रुचि वाला व्यक्ति अपनी हर प्रकार की जिज्ञासा को अपनी रुचित वाली पुस्तकें पढक़र शांत कर सकता है। पुस्तकालय (Library) वस्तुत: हमारी रुचियों का परिष्कार कर हमें अनुशासन भी सिखाता है। वहाँ स्थित पुस्तकों में मनुष्य की प्रत्येक समस्या का समाधान बंद है।

अब यह बात खुद मनुष्य पर है कि यह जिज्ञासु बनकर उसे प्राप्त कर सके। पुस्तकें मनोरंजन का भी श्रेष्ठ साधन मानी जाती है, अत: पुस्तकालय को हम एक मनोरंजनगृह, एक प्रेक्षागृह भी कह सकते हैं कि जहाँ पहुंचकर व्यक्ति पुस्तकों के माध्यम से बड़े मनोरंजक ढंग के जीवन व्यवहारों का प्रेक्षण (निरीक्षण) कर सकता है। पुस्तकालय (Library) हमें सभ्याचार भी सिखाते है, भिन्न रुचियों और लोगों से परिचित भी कराते हैं। वहाँ जाकर व्यक्ति शोर नहीं कर सकता, दूसरों के पठन-पाठन में विघ्न नहीं डाल सकता। इस प्रकार एक स्वत-स्फूर्त अनुशासन की शिक्षा भी हमें पुस्तकालयों से-से अपने आप ही प्राप्त हो जाती है।

जहाँ पुस्तकालय होते हैं, वहाँ दैनिक समाचार-पत्र, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक और अन्य प्रकार के पत्र-पत्रिकांए आदि भी अवश्य रहा करते हैं। इन सबको अध्ययन हमें रोजमर्रा के जीवन और जीवन के ताजेपन से परिचित कराता रहता है। हमारी रुचियों का विस्तार, परिष्कार और संस्कार भी इस सबका अनवार्य परिणाम हुआ करता है। इस दृष्टि से भी पुस्तकालय का महत्त्व (pustakalaya ka mahatva) स्पष्ट है।

पुस्तकालयों के दो रूप होते हैं-एक निजी पुस्तकालय और दूसरा सार्वजनिक पुस्तकालय। आज तो क्या किसी भी युग में निजी या व्यक्तिगत पुस्तकालय स्थापित करने की शक्ति और रुचि सभी में नहीं रही और न रह ही सकती है। अत: निजी पुस्तकालय का लाभ कुछ गिने-चुने लोगों तक ही सीमित होकर रह जाता है। सार्वजनिक पुस्तमालय सबकी सांझी संपत्ति हुआ करते हैं। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति भी इन पुस्तकालयों में जाकर अपनी ज्ञान-पिपासा शांत कर सकता है। (Pustakalaya Par Nibandh)

इस प्रकार पुस्तकालय आम आदमी को आर्थिक आलंबन भी देते हैं। एक यह बात भी विचारणीय है कि संपन्न व्यक्ति भी सारी-अर्थात सभी विषयों से सम्बंधित पुस्तकों के ढेर अपने पास एकत्रित नहीं कर सकता या कर पाता। ऐसा भी केवल सर्वाजनिक पुस्तकालय में ही संभव हुआ करता है और बिना किसी भेद-भाव के उसका लाभ अमीर-गरीब या सामान्य-विशेष सभी उठा सकते हैं।

पुस्तकालयों का एक और महत्त्व भी है। वहाँ अक्सर दुर्लभ पुस्तकों, पांडुलिपियों आदि का संकलन भी रहा करता है। शोध करने वाले छात्र एंव अन्य शोधार्थी लोग निश्चय ही इससे बहुत अधिक लाभांवित होते और हो सकते हैं। इस दृष्टि से पुस्तकालय को हम पुरातत्व का संग्राहक भी कह सकते हैं। इन्हीं सब बातों के कारण अत्यंत प्राचीन काल से ही पुस्तकों (Books) के संकलन या पुस्तकालय स्थापित करने की परंपरा रही है। पुराने जमाने में पहाड़ी कंदराओं तक में पुस्तकालय स्थापित किए जाते थे।

आज तो उनकी आवश्यकता एंव महत्त्व और भी बढ़ गया है। आज विशाल भवनों में सभी दृष्टियों से उन्नत पुस्तकालय स्थापित हैं और नए-नए स्थापित हो रहे हैं। अब तो प्राचीन अलभ्य या दुर्लभ पुस्तकों, पांडुलीपियों के संरक्षण की गई वैज्ञानिक रीतियाँ भी विकसित कर ली गई हैं, ताकि उनमें संचित ज्ञान अगली पीढिय़ों के लिए सुलभ रह सके।

इस विवेचन-विश्लेषण से पुस्तकालय (Library) का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। हमें उनका अधिक से अधिक सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग नहीं। कुछ लोग-पुस्तकों में से मतलब के पृष्ट फाडक़र, पुस्तकों में गंदी चित्रकारी और गंदी बातें लिखकर उनका दुरुपयोग ही तो करते हैं। यह प्रवृति बड़ी घातक है। इससे बचे रहकर ज्ञान के भंडारों का उपयोग इस प्रकार से करना चाहिए कि वे दूसरों के लिए भी उपयोगी बने रह सकें। ऐसा होना हमारे प्रशिक्षित एंव सुसभ्य होने की पहचान माना जाएगा। पढ़े-लिखे होने का यह भी एक अर्थ है कि-सभ्य देशों के नागरिक अपने से भी पहले दूसरों का ध्यान रखा करतें हैं


Pustakalaya Ka Mahatva Nibandh Hindi Mein

पुस्तकालय : निबंध (2)

पुस्तकालय से तात्पर्य है पुस्तकों का घर। विद्या के प्रचार-प्रसार में विद्यालयों के अतिरिक्त पुस्तकालयों का ही सर्वाधिक योगदान होता है। यह वही स्थल है जहाँ हमें भांति-भांति के विषयों की सहज जानकारी उपलब्ध हो जाती है।

पुस्तकालयों का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। प्राचीन काल से ही जब से भाषा को लिपिबद्ध करने का प्रचलन हुआ पुस्तकालयों का भी गठन किया गया। विश्व के अनेक प्रांतों में आज भी प्राचीनतम पुस्तकालयों के साक्ष्य भरे पड़े हैं। भारत के नालन्दा विश्वविधालय में एक समृद्ध एवं विस्तृत पुस्तकालय (Library) के अवशेष प्राप्त हुए हैं। रोमन एवं यूनानी इतिहासकारों के समृद्ध पुस्तकें आज भी इन देशों में मौजूद हैं। सामान्यतः हमें मूलभूत विषयों की जानकारी शिक्षण-संस्थानों में मिलती है लेकिन विषय की वृहत जानकारी हेतु हमें पुस्कालयों की ही शरण में जाना पड़ता है।

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पूरे विश्व में हजारों पुस्तकालय (Library) मौजूद है जहाँ छात्र-छात्राएँ निःशुल्क अथवा कुछ राशि अदा कर अपना ज्ञानार्जन करते हैं। पुस्तकालयों का वर्गीकरण दो रूपों में किया जा सकता है सार्वजनिक पुस्तकालय और सरकारी पुस्तकालय। सार्वजनिक पुस्तकालय वैसे पुस्तकालय हैं जहाँ कोर्इ भी व्यकित निःशुल्क अथवा निश्चित राशि अदा कर वहाँ मौजूद पुस्तकों (Books) को पढ़ सकता है अथवा ज़रूरत होने पर अल्पावधि के लिए अपने साथ ले जा सकता है।

इनके विपरीत सरकारी पुस्तकालय की सुविधा केवल विेशेष सदस्यों को दी जाती है, जो कि उस विभाग से सम्बंधित हो अथवा उनके पास विेशेष अनुमति हो। ऐसे पुस्तकालयों का सदस्य सरकारी अथवा उक्त कार्यालय से सम्बंधित कर्मचारी ही हो सकता है। आज इंटरनेट पर भी अनेक पुस्तकों का संग्रह है जिसे ई-लाइब्रेरी (e-Library) कहा जाता है। इस तरह कोई भी व्यकित इंटरनेट के प्रयोग से किसी भी विषय पर अपनी जानकारी को बढ़ा सकता है। इससे समय और पैसे की भी बचत होती है। आज के इलेक्टानिक युग में लोग पुस्तकालय जाने के बजाय ई-लाइब्रेरी का अधिकाधिक प्रयोग करने लगे हैं।

प्रत्येक पुस्तकालय में पुस्तकों को उनके विषय तथा महत्ता के अनुरूप संग्रहित किया जाता है। हर पुस्तक को एक विशेष कूट संख्या से अंकित किया जाता है, ताकि उसे आसानी से खोजा तथा संग्रहित किया जा सके। हम पुस्तकालय में पुस्तकाध्यक्ष की अनुमति से अथवा सदस्य बनकर वांछित पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं अथवा वहाँ बैठकर उक्त पुस्तक को पढ़ सकते हैं। वैसे स्थल जहाँ उच्च गुणवत्ता के विधालयों का अभाव है वहाँ पुस्कालयों की भूमिका और भी बढ़ जाती है। पुस्तकालय (Pustakalaya) आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों के लिए वरदान स्वरूप होता है। निर्धन व्यकित या छात्र-छात्राएँ भी यहाँ महंगी पुस्तकों का लाभ उठा सकते हैं।

ऐसा देखा जाता है कि कोई शरारती तत्व पुस्तकालयों में पुस्तकों पर अनवांछित कथन लिख देते हैं या उन्हें क्षतिग्रस्त कर देते हैं। कई बार तो अत्यन्त दुर्लभ पुस्तकें भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इस तरह हम अत्यन्त महत्त्व के पुस्तकों को नष्ट कर जाते हैं। अत: हमें पुस्तकालयों में पुस्तकों का लाभ लेते समय यह ध्यान देना चाहिए कि किसी भी कारण हमसे कोई पुस्तक (Book) क्षतिग्रस्त न हों।

हमारी जागरूकता और आपसी समझ कईयों के लिए वरदान साबित हो सकती है। पुस्तकालयों में महत्त्व (pustakalaya ka mahatva) के कारण ही विद्यालयों महाविद्यालयों एवं सरकारी कार्यालयों आदि में पुस्तकालयों का प्रचलन बढ़ा है। पुस्तकालय जाने के प्रति आज के युवा थोड़े असंवेदनशील हो गए हैं। अतः हमें अपने अतिरिक्त समय में पुस्तकालय (Library)जरूर जाना चाहिए ताकि हमारे ज्ञान का दायरा बढ़ता जाए।


Pustakalaya Ka Mahatva Essay in Hindi Language

पुस्तकालय का महत्व (Pustakalaya Par Nibandh) -3 

अधिकाश विद्यालयों के पुस्तकालय में पुस्तकों में दीमक लग रही है। पुस्तकों (Books) पर दुनिया भर की धूल जमी है। ढेर की ढेर पुस्तकें प्रतिवर्ष विद्यालयों में जमा होती जा रही हैं और खासे पुस्तकालय पुस्तकों की सुख्या को दृष्टि में रखकर तैयार हो चुके हैं। अच्छे पुस्तकालय देश की प्रगति के प्रतीक हैं।

जिस देश में जितने अधिक अच्छे पुस्तकालय हैं, वह देश उतना ही अधिक संपन्न और विकासशील है। इस दृष्टि से समृद्धिशाली पुस्तकालयों का विस्तार होना निश्चित है बौद्धिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक क्रांति का द्योतक है, परंतु राजकीय राशि तथा लोकल फंड नहीं हो सकते जब तक कि उनमें संगृहित पुस्तकें अधिक से अधिक जनों के द्यारा पढ़ी समझी नहीं जाती।

तथ्य यह है कि पुस्तकालयों में तेजी से पुस्तकों का आना शुरू हुआ है उसकी रफ्तार को मध्य नजर रखते हुए पुस्तकों के अध्ययन करने वालों की संख्या निरंतर न्यून से न्यूनतक होती जा रही है। कहीं-कहीं तो वर्षभर पुस्तकालय बंद से रहते हैं या बीच में खुल भी जाते हैं तो निरीक्षण होने के कारण से, उसी समय हाँ होती है और दीमक लगी पुस्तकों को निरीक्षक महोदय के सामने पेश कर उनको नष्ट करने की कार्यवाही की आवश्यकता पर ध्यान दिलाया जाता है और यूं कितनी ही हृतभाज्य पुस्तकें बिना किसी की आंखों से गुजरे काल के गाल में समा जाती है।

इसका परिणाम यह होता है कि सरकार की पूर्व-निर्धारित योजना में इजाफा होने के स्थान पर घाटा होता है और साभ्यतिक, सांस्कृतिक तथा बौद्धिक क्रांति होने से बच जाती है।

विद्यालयों में जितनी दिलचस्पी पुस्तकं खरीदने में प्राय: रखने को मिलती है। उससे बहुत कम अभिरूचि पुस्तकालय व्यवस्था में नजर आती है। पुस्तकालय (Library) कम से कम विद्यालय-समय के अलावा सुबह-शाम अलग से खुलना चाहिए। कारण ‘स्कूल के समय’ में छात्र पुस्तकालय व वाचनालय का आवश्यकतानुरूप प्रयोग नहीं कर पाते हैं क्योंकि वे कक्षाओं में अध्ययनरत रहते हैं।

आज आवश्यकता इस प्रयास की है कि पुस्तकों की दीमकों से बचाकर अधिक से अधिक दिमागों के लिए खुराक के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इस दृष्टि से पुस्तकालय आकर्षक हो, साज-सज्जा से पूर्ण हो। छात्रों को वहीं बैठकर मनपसंद पुस्तक पढऩे की इजाजत हो।

पुस्तकालय में प्रवेश करने और वहाँ से जाने के पूर्व छात्र हस्ताक्षर करे। साथ ही एक पंजिका ऐसी भी रखी जानी चाहिए जिसमें निबंध, कहानी, उपन्यास, राजनीति-शास्त्र, इतिहास आदि पुस्तकों के सम्बंध में राय लिखने के लिए पृष्ट संख्या अंकित हो, तथा 1 से 15 तक अपन्यास, 16 से 30 तक इतिहास, छात्र जिस विषय पर पुस्तक पढ़ेगा, यदि वह चाहेगा तो तत्सम्बंधी पुस्तक पर अपनी राय ‘इंडैक्स’ में दर्शाए पृष्ट पर लिख सकेगा।

इस प्रकार विभिन्न विषयों पर न केवल छात्रों की राय आसानी से जानी जा सकेगी बल्कि छात्रों की रूचि, उनके स्तर पर बोध का भी पता चल सकेगा और अंत में जाकर उनकी रायों के अध्ययन से बहुत कुछ सार्थक निर्णय लिए जाने में सहायता मिल सकेगी।

कम से कम सत्र में आने वाली पुस्तकों के। उसके साथ ही एक बोर्ड ऐसा होना चाहिए जिस पर गत सत्र अथवा सत्रों में विभिन्न विषयों की पढ़ी-जाने वाली पुस्तकों के रैपर लगाए गए हों तथा साथ में उन पर अंकित की गई राय के आवश्यक वाक्यों को मय छात्र के नाम अथवा कक्षा के माध्यम से लिखा गया हो। यों यदि व्यवस्था जम जाए तो यह काम मासिक / द्विमासिक / त्रेमासिक आधारों पर चालू सत्र में भी किया जा सकता है।

छात्रों में आत्म-प्रदर्शन की भावना बलवती होती है, इससे उसे पर्याप्त अवसर मिल सकेगा। इसी आधार पर देाश्भर के पुस्तकालयों में विभिन्न विषयों में सबसे अधिक पढ़ी गई। पुस्तकों के नाम आ सकेंगे ओर जिन्हें पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित कर लेखक तथा पाठक के मध्य खासा विचार-मंच तैयार किया जा सकेगा। पुस्तकों को मानसिक आयु के आधार पर समान्यतया वर्गीकृत करने का यत्न होना चाहिए।

यह ज़रूरी नहीं है कि कक्षा स्तर अथवा आयु के अनुसार वर्गीकृत की गई पुस्तकों में से ही छात्र अपनी मनपसंद पुस्तक छांटने-पढऩे के लिए विवश हो बल्कि वह वर्गीकरण तो पुस्तकों को पढऩे के लिए छांटने में सिर्फ़ मार्गदर्शन करने की सुविधा प्रदान करेगा

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अक्सर ऐसा होता है कि छात्र कोई भारी-भरकम पुस्तक उठा ले जाता है और फिर उसे पढ़ते समय सिरदर्द महसूस करता है। इस प्रकार उसमें पुस्तकों के प्रति अरूचि पैदा होने लगती है।

पुस्तकालय में पुस्तक-गोष्ठी का आयोजन प्रति माह किया जा सकता है, जिसमें चर्चित होने वाली पुस्तकों की घोषणा पूर्व में की जाएगी। छात्र तथा अध्यापक दोनों का ही उन पुस्तकों पर ‘पेपर रीडिंग’ और प्रश्नोत्तरात्मक ढंग का प्रयत्न रह सकता है।

प्रभमिक तथा उच्च प्राथमिक शालांए जिनके पास पुस्तकालय (Library) का अभावर रहता है, जहाँ अध्यापक चाहते हुए भी विभिन्न पुस्तकों के अध्ययन से वंचित रह जाते हैं, उनको सैकेंडरी तथा हायर सैकेंडरी के पुस्तकालय (Pustakalaya) से सम्बंध किया जाना चाहिए। वे माह में एक या दो बार अपने तथा अपने छात्रों के लिए वहाँ से पुस्तकें ले जा सके और समय पर उनको लौट दें।

जिला स्तर पर वर्ष में एक बार अवश्य पुस्तक मेला लगना चाहिए, जिसके द्वारा देश-विदेश में होने वाली प्रगति को समझाया जा सके और अध्यनशील अध्यापक तथा छात्रों की विभिन्न पुस्तकों पर दी गई राय का प्रकाशन हो सके, विषायनुसार श्रेष्ठ पढ़ी गई पुस्तकों के नाम सामने लाए जा सकें। देशभर में होने वाली पुस्तक-प्रगति के आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक-प्रगति के संदर्भ में चार्ट द्वारा प्रस्तुत किए जांए।

इस कार्य में प्रकाश संर्घ से सहायता ली जा सकती है। पुस्तकों के प्रति गंभीर रूचि रखने वाले योज्यतम छात्रों को इस अवसर पर पुरस्कृत भी किया जा सकता है। पुस्तक मेले के समय पर ही पत्रिका-प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाए। जो पत्र-पत्रिकांए विद्यालय में न ही आती है, कोशिश करने पर उनकी एक-एक प्रति हासिल की जा सकती है और उनका प्रदर्शन किया जा सकता है।

उपर्युक्त बिंदुओं पर प्रत्येक विद्यालय अपनी परिस्थितियों तथा सुविधाओं को ध्यान में रखकर इस प्रकार से छोटे अथवा बड़े रूप में कार्य प्रारंभ कर सकता है। इसके अलावा और नए तरीकों की ईजाद कर सकता है। अपने विद्यालयों में अभी तक इस दिशा में कार्य करने की सुविधांए बहुत न्यून है। परंतु विभाग द्वारा आवश्यक सुविधांए मुहैया करने पर सहज ही प्रत्येक विद्यालय ‘पुस्तकालय क्रांति’ में सक्रिय सहयोग प्रदान कर, अध्यापक तथा छात्रों को चिंतन के लिए नए क्षितिज दे सकता है। निश्चित ही इस प्रकार से कॉफी के प्याले में उठने वाला तनाव और दिशा भ्रमित हो जाएगा और युवा शक्ति एक नई तथा सशक्त दिशा में कार्यरत हो सकेगी।

Essay on Library in Hindi for Class 1,2 & 3

Few Lines about Library in Hindi (Pustakalaya par 10 line)

  1. पुस्तकालय का अर्थ है – पुस्तकों का घर।
  2. पुस्तकालय में हर तरह की ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध होती है।
  3. पुस्तकालय के माध्यम से अत्यंत दुर्लभ पुस्तकों का ज्ञान भी अर्जित किया जा सकता है।
  4. निर्धन व्यकित या छात्र-छात्राएँ भी यहाँ महंगी पुस्तकों का लाभ उठा सकते हैं।
  5. पुस्तकालय में हमेशा अनुशासन का परिचय देना चाहिए।
  6. हमें हमारे खाली समय में पुस्तकालय जरूर जाना चाहिए।
  7. पुस्तकालय की किसी भी पुस्तक का पृष्ठ (पेज) न फाड़ें।
  8. पुस्तकालय से ली गयी पुस्तक को पढ़ने के बाद वापिस पुस्तकालय में जमा करवाना चाहिए।
  9. किसी भी पुस्तक पर कभी कुछ न लिखें।
  10. पुस्तकालय में शांति बनाकर रखनी चाहिए।

Essay on Library in Hindi PDF

 

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