Speech on Teachers Day in Hindi | शिक्षक दिवस पर भाषण

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Teachers Day Speech in Hindi (टीचर्स डे स्पीच इन हिंदी)

शिक्षक / अध्यापक पर भाषण 1

माननीय प्रिंसिपल, सम्मानित शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथी छात्रों, आप सभी का इस शुभ अवसर पर स्वागत करते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है। आज हम यहाँ सबसे ज़्यादा सराहनीय अवसरों में से एक, शिक्षक दिवस (Teachers Day), का जश्न मनाने के लिए यहाँ इकट्ठे हुए हैं। यह मेरे लिए शिक्षकों के बारे में कुछ शब्द, स्कूलों और कॉलेजों में उनकी भूमिका तथा छात्रों के जीवन पर उनके प्रभावों को साझा करने का अवसर है।

शिक्षक (Teacher) हमारे समाज का आधार हैं क्योंकि वे बच्चों के रूप में राष्ट्र के भविष्य को सही आकार देने में बड़ा योगदान देते हैं, अर्थात छात्रों को देश के आदर्श नागरिक बनने में मार्गदर्शन करते हैं। शिक्षकों की नौकरी जिम्मेदारी और चुनौतियों से भरी है क्योंकि प्रत्येक छात्र एक जैसा नहीं होता है इसलिए शिक्षक को अलग-अलग छात्रों के लिए अलग-अलग शिक्षण पैटर्न अपनाना पड़ता है। शिक्षण एक सामाजिक अभ्यास है और ज्ञान से अधिक है।

एक शिक्षक अच्छा इंसान होना चाहिए जो अपनी नौकरी की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह से अपने कंधों पर उठा सकता हो और उस स्थिति की संवेदनशीलता को समझ सकता हो जहाँ विभिन्न पृष्ठभूमि वाले छात्र सीखने के लिए एक साथ आते हैं जहाँ पढ़ाते समय शिक्षक अपनी क्षमता के सर्वश्रेष्ठ कौशल और ज्ञान का इस्तेमाल कर सकें। हर शिक्षक के पास जो गुण मुख्य रूप से होने चाहिए उनमें से कुछ इस प्रकार हैं: उत्साह-यह एक ज्ञात तथ्य है कि जो अध्यापक (Teacher) शिक्षण के दौरान उत्साह दिखाते हैं वह छात्रों को सीखने, ज्ञान प्राप्त करने का एक मज़ेदार और सकारात्मक माहौल के निर्माण में मदद करते हैं। ये शिक्षक शिक्षण के समान स्वरूप का पालन न करके छात्रों को व्यस्त और उत्साही रखने के लिए नई शिक्षण विधियों को जन्म देते हैं।

शिक्षक की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका छात्रों को प्रेरित करना है। कुछ छात्र अपने शिक्षक को एक आदर्श रूप में देखकर उनके जैसा बनने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हर शिक्षक प्रत्येक छात्र पर एक सकारात्मक प्रभाव को छोड़े। विद्यार्थियों के साथ बातचीत-यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि शिक्षार्थी की क्षमता को समझने के लिए शिक्षक (Teacher) छात्रों के साथ पारदर्शी और खुली चर्चा में शामिल हो। कुछ छात्र शर्मीले होते हैं जबकि अन्य विफलता से डरते हैं। एक सच्चे शिक्षक पर व्यावहारिक रूप से छात्रों को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करने में भरोसा किया जा सकता है। परंपरागत रूप से शिक्षण प्रार्थना के समान समझा जाता है।

पुराने दिनों में माता-पिता गुरूकुल में अपने बच्चों को छोड़ते थे (एक प्रकार का आवासीय स्कूल जहाँ छात्र अध्ययन के लिए शिक्षक के साथ रहते हैं) । इस परंपरा को माता-पिता और शिक्षकों के बीच विश्वास और बंधन द्वारा बहुत समर्थन प्राप्त था। आज भी विश्वास सबसे महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है जो माता-पिता को अपने बच्चों को किसी एक विशेष स्कूल में पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। एक शिक्षक को वैकल्पिक माता-पिता माना जाता है इसलिए शिक्षण का यह पेशा सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण और जवाबदेही से भरा होता है। कई बार हमें शारीरिक दंड के बारे में सुनने को मिलता है।

कुछ शिक्षक विद्यार्थियों को इतनी बर्बरता और क्रूरता से मारते है कि उनमें से कुछ की तो मृत्यु भी हो जाती हैं। हालांकि, ऐसा करना पूरे भारत में प्रतिबंधित है। यद्यपि यह ज़रूरी है कि शिक्षकों को कभी-कभार सख्त होना चाहिए लेकिन छात्रों को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने के बजाय उन्हें दंडित करने के और भी कई वैकल्पिक उपाय हो सकते हैं। खैर अब मैं इस भाषण को हमारे शिक्षकों को बहुत धन्यवाद देते हुए समाप्त करना चाहूंगा जो इतने दयालु और देखभाल करने वाले हैं। इस स्कूल का हिस्सा बनकर हम खुद को बहुत सौभाग्यशाली महसूस कर रहे हैं।

धन्यवाद!


शिक्षक दिवस पर भाषण-2

भारत भूमि पर अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान से हम सभी का मार्ग दर्शन किया है। उन्ही में से एक महान विभूति शिक्षाविद्, दार्शनिक, महानवक्ता एवं आस्थावान हिन्दु विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाये तो समाज की अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है।

ऐसी महान विभूति का जन्मदिन शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में मनाना हम सभी के लिये गौरव की बात है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के व्यक्तित्व का ही असर था कि 1952 में आपके लिये संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का पद सृजित किया गया। स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति जब 1962 में राष्ट्रपति बने तब कुछ शिष्यों ने एवं प्रशंसकों ने आपसे निवेदन किया कि वे उनका जनमदिन शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में मनाना चाहते हैं। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा कि मेरे जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा। तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ज्ञान के सागर थे। उनकी हाजिर जवाबी का एक किस्सा आपसे Share कर रहे है:

एक बार एक प्रतिभोज के अवसर पर अंग्रेजों की तारीफ करते हुए एक अंग्रेज ने कहा – “ईश्वर हम अंग्रेजों को बहुत प्यार करता है। उसने हमारा निर्माण बडे यत्न और स्नेह से किया है। इसी नाते हम सभी इतने गोरे और सुंदर हैं। उस सभा में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भी उपस्थित थे। उन्हे ये बात अच्छी नही लगी अतः उन्होने उपस्थित मित्रों को संबोधित करते हुए एक मनगढंत किस्सा सुनाया

“मित्रों, एक बार ईश्वर को रोटी बनाने का मन हुआ उन्होने जो पहली रोटी बनाई, वह जरा कम सिकी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों का जन्म हआ। दूसरी रोटी कच्ची न रह जाए, इस नाते भगवान ने उसे ज्यादा देर तक सेंका और वह जल गई। इससे निग्रो लोग पैदा हए। मगर इस बार भगवान जरा चौकन्ने हो गये। वह ठीक से रोटी पकाने लगे। इस बार जो रोटी बनी वो न ज्यादा पकी थी न ज्यादा कच्ची। ठीक सिकी थी और परिणाम स्वरूप हम भारतियों का जन्म हुआ।

ये किस्सा सुनकर उस अग्रेज का सिर शर्म से झुक गया और बाकी लोगों का हँसते हँसते बुरा हाल हो गया। मित्रों, ऐसे संस्कारित एवं शिष्ट माकूल जवाब से किसी को आहत किये बिना डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने भारतीयों को श्रेष्ठ बना दिया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मानना था कि व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण में शिक्षा का विशेष योगदान है। वैश्विक शान्ति, वैश्विक समृद्धि एवं वैश्विक सौहार्द में शिक्षा का महत्व अतिविशेष है। उच्चकोटी के शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहीम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारतरत्न से सम्मानित किया।

महामहीम राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के विचारों को ध्यान में रखते हए, मित्रों मेरा ये मानना है कि शिक्षक दिवस (Teachers Day) के पुनित अवसर पर हम सब ये प्रण करें कि शिक्षा की ज्योति को ईमानदारी से अपने जीवन में आत्मसात करेंगे क्योंकि शिक्षा किसी में भेद नही करती, जो इसके महत्व को समझ जाता है वो अपने भविष्य को सुनहरा बना लेता है।

सम्सत शिक्षकों को हम निम्न शब्दों से नमन करते हैं-

ज्ञानी के मुख से झरे, सदा ज्ञान की बात।

हर एक पाखुडी फूल, खुशबु की सौगात।।

जयहिन्द