Essay on Teachers Day in Hindi (5 सितंबर शिक्षक दिवस)
ये कहा जाता है कि किसी भी पेशे की तुलना अध्यापन से नहीं की जा सकती। ये दुनिया का सबसे नेक कार्य है। पूरे भारत में शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में इस दिन को मनाने के द्वारा 5 सितंबर को अध्यापन पेशे को समर्पित किया गया है। शिक्षकों को सम्मान देने और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को याद करने के लिये हर साल इसे मनाया जाता है।
देश के विकास और समाज में हमारे शिक्षकों के योगदान के साथ ही अध्यापन पेशे की महानता को उल्लेखित करने के लिये हमारे पूर्व राष्ट्रपति के जन्मदिवस को समर्पित किया गया है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन पेशे को दिया है। वह विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे। इसलिये वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का अनुरोध किया।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था और 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के द्वारा दर्शनशास्त्र शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।
उन्होंने देश में बनारस, चेन्नई, कोलकाता, मैसूर जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा विदेशों में लंदन के ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया है। अध्यापन पेशे के प्रति अपने समर्पण की वजह से उन्हें अपने बहुमूल्य सेवा की पहचान के लिये 1949 में विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति कमीशन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।
1962 से शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में 5 सितंबर को मनाने की शुरुआत हुई। अपने महान कार्यों से देश की लंबे समय तक सेवा करने के बाद 17 अप्रैल 1975 को इनका निधन हो गया।
शिक्षक विद्यार्थियो के जीवन के वास्तविक कुम्हार होते हैं जो न सिर्फ़ हमारे जीवन को आकार देते हैं बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें। इस वजह से हमारा राष्ट्र ढेर सारे प्रकाश के साथ प्रबुद्ध हो सकता है। इसलिये, देश में सभी शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है।
अपने शिक्षकों के महान कार्यों के बराबर हम उन्हें कुछ भी नहीं लौटा सकते हालाँकि, हम उन्हें सम्मान और धन्यावाद दे सकते हैं। हमें पूरे दिल से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम अपने शिक्षक (Teacher) का सम्मान करेंगे क्योंकि बिना शिक्षक के इस दुनिया में हम सभी अधूरे हैं।
Shikshak Diwas Par Nibandh
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्ति थे जो दो कार्यकाल तक भारत के पहले उपराष्ट्रपति और उसके बाद देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। वह एक अच्छे शिक्षक, दर्शनशास्त्री और लेखक भी थे। विद्यार्थियों के द्वारा शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में 5 सितंबर को भारत में हर वर्ष उनके जन्मदिन को मनाया जाता है। इनका जन्म एक बेहद गरीब ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर 1888 को मद्रास के तिरुतनि में हुआ था। घर की माली हालत के चलते इन्होंने अपनी शिक्षा छात्रवृत्ति की सहायता से पूरी की।
डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोवडिह स्कूल, तिरुवेल्लूर, लूथरेन मिशनरी स्कूल, तिरुपति, वूरहिज़ कॉलेज, वेल्लोर और उसके बाद मद्रास क्रिश्चन कॉलेज से प्राप्त की। उन्हें दर्शनशास्त्र में बहुत रुचि थी इसलिये इन्होंने अपनी बी। ए और एम। ए। की डिग्री दर्शनशास्त्र में ली।
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मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में, एम. ए. की डिग्री पूरी करने के बाद 1909 में सहायक लेक्चरर के रूप में इनको रखा गया। हिन्दू दर्शनशास्त्र के क्लासिक्स की विशेषज्ञता इनके पास थी जैसे उपनिषद, भागवत गीता, शंकर, माधव, रामुनुजा आदि। पश्चिमी विचारकों के दर्शनशास्त्रों के साथ ही साथ बुद्धिष्ठ और जैन दर्शनशास्त्र के भी ये अच्छे जानकार थे।
1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी में ये दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने और जल्द ही 1921 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के लिये नामित हुए। हिन्दू दर्शनशास्त्र पर लेक्चर देने के लिये बाद में इन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से बुलावा आया। डॉ. राधकृष्णन ने अपने कड़े प्रयासों के द्वारा, दुनिया के मानचित्रों पर भारतीय दर्शनशास्त्र को रखने में सक्षम हुए।
बाद में 1931 में, 1939 में ये आंध्र विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के रूप में चुने गये। इनको 1946 में यूनेस्को 1949 में सोवियत यूनियन के एंबेस्डर के रूप में भी नियुक्त किया गया। डॉ। राधाकृष्णन 1952 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने और 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किये गये।
भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में दो कार्यकाल तक देश की सेवा करने के बाद 1962 में भारत के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया और 1967 में सेवानिवृत्त हुए। वर्षों तक देश को अपनी महान सेवा देने के बाद 17 अप्रैल 1975 को इनका देहांत हो गया।
डॉ. राधकृष्णन ने 1975 में टेम्प्लेटन पुरस्कार (लेकिन इन्होंने इसको ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को दान कर दिया) , 1961 में जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार आदि भी जीता। इनको श्रद्धांजलि देने के लिये 1989 में यूनिवर्सिटी ने राधाकृष्णन छात्रवृत्ति की शुरुआत की जिसे बाद में राधाकृष्णन चिवनिंग स्कॉलरशिप्स का नाम दिया गया।
Shikshak Diwas Par Anuched Lekhan
शिक्षक दिवस (टीचर्स डे) भारत में हर वर्ष 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। परंतु यह दिवस केवल भारत में ही नहीं मनाया जाता है, अपितु शिक्षक आदर-भाव को प्रकट करने के लिए दुनिया के लगभग सभी देशों में अलग-अलग तिथि को मनाया जाता है।
अमेरिका में मई के पहले मंगलवार को ‘नेशनल टीचर्स डे’ मनाया जाता है। इसलिए वहाँ शिक्षक दिवस (Teachers Day) के लिए कोई निश्चित तारीख नहीं है। इसी प्रकार चीन में शिक्षक दिवस एक सितंबर को होता है और ब्रुनेई में हर साल 23 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वेनेजुएला में 15 जनवरी को, कोरिया में 15 मई को और ताइवान में 28 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
हम जानते हैं कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षा, मर्मज्ञता एवं शिक्षा-प्रेम के कारण मनाया जाता है। इस दिन विद्यालय का कार्यभार बच्चों के सुपुर्द कर दिया जाता है और बच्चे शिक्षक बनकर एक शिक्षक का कार्य निर्वाह करते हैं।
सादा जीवन बिताने वाले डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को मद्रास के तिरूतणी नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने छात्र जीवन में आर्थिक संकटों का सामना करते हुए कभी हिम्मत नहीं हारी थी। डॉ। राधाकृष्णन भाग्य से अधिक कर्म में विश्वास करते थे। वह दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया था। सन् 1952 में वे देश के उपराष्ट्रपति चुने गए और दस वर्ष तक उपराष्ट्रपति के पद पर रहे। फिर 12 मई, 1962 में वे भारत के राष्टपति चने गए।
इसी दौरान चीन के आक्रमण के समय उन्होंने अद्भुत धैर्य और साहस का परिचय देते हुए संकटकालीन परिस्थिति की घोषणा की। शिक्षक।, दार्शनिक, नेता और एक विचारक के रूप में समान रूप से सफल होने वाले डॉ. राधाकृष्णन मूलतः शिक्षक थे। अपने जीवन के 40 वर्ष उन्होंने अध्यापन कार्य में व्यतीत किए।
सादा जीवन जीने वाले डॉ. राधाकृष्णन को बच्चे विशेष प्रिय थे। बच्चे चाहे शोर करें या चीजें तोडे-फोडें, वे उन्हें कुछ नहीं कहते थे; परंतु उनकी पुस्तकें कोई छेडे या फाडे, यह उन्हें सख्त नापसंद था। स्वाधीन भारत के सामने जब उच्च शिक्षा की नवीन व्यवस्था की स्थापना का प्रश्न उठा तब तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद ने शिक्षा आयोग की नियुक्ति की योजना बनाई। उस समय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष डॉ। राधाकृष्णन को ही बनाया गया। इस पद हेतु सबसे उपयुक्त वही व्यक्ति थे।
सन् 1950 में शिक्षा आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित हुई और आज भी भारत की शिक्षा व्यवस्था का आधार वही रिपोर्ट बनी हुई है। इस प्रकार देश की सेवा करते हुए 16 अप्रैल, 1975 को डॉ. राधाकृष्णन का देहावसान हो गया। भारत के अलावा पश्चिमी देशों तक में भारतीय ज्ञान का प्रभुत्व स्थापित करने वाले डॉ। राधाकृष्णन का नाम उद्भट शिक्षाशास्त्री के रूप में सदैव अमर रहेगा।
समाज को सही दिशा देने में शिक्षक की अहम् भूमिका होती है। वह देश के भावी नागरिकों अर्थात् बच्चों के व्यक्तित्व संवारने के साथ-साथ उन्हें शिक्षित भी करता है। इसलिए शिक्षकों द्वारा किये गये श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन ही शिक्षक दिवस कहलाता है। हालांकि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् जो कि 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे।
उनके जन्म दिवस के अवसर पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे संस्कृतज्ञ, दार्शनिक होने के साथ-साथ शिक्षा शास्त्री भी थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे शिक्षा क्षेत्र से ही सम्बद्ध थे। 1920 से 1921 तक उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के किंग जार्ज पंचम पद को सुशोभित किया। 1939 से 1948 तक वे विश्वविख्यात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर रहे।
राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनका जन्म दिवस सार्वजनिक रूप से आयोजित करना चाहा तो उन्होंने जीवन का अधिकतर समय शिक्षक रहने के नाते इस दिवस को शिक्षकों का सम्मान करने हेतु शिक्षक दिवस (Teachers day)मनाने की बात कही। उस समय से प्रतिवर्ष यह दिन शिक्षक दिवस (Teachers Day) के रूप में मनाया जाता है।
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शिक्षकों द्वारा किये गये श्रेष्ठ कायो का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का भी यही दिन है। इस दिन स्कूलों कालेजों में शिक्षक का कार्य छात्र खुद ही संभालते हैं। इस दिन राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण के प्रति समर्पित और छात्र-छात्राओं के प्रति अनुराग रखने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।
शिक्षक राष्ट्रनिर्माण में मददगार साबित होते हैं वहीं वे राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षक भी हैं। वे बालकों में सुसंस्कार तो डालते ही हैं उनके अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर कर उन्हें देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व भी वहन करते हैं। शिक्षक राष्ट्र के बालकों को न केवल साक्षर ही बनाते हैं बल्कि अपने उपदेश द्वारा उनके ज्ञान का तीसरा नेत्र भी खोलते हैं। वे बालकों में हित-अहित, भला-बुरा सोचने की शक्ति उत्पन्न करते हैं। इस तरह वे राष्ट्र के समग्र विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शिक्षक उस दीपक के समान हैं जो अपनी ज्ञान ज्योति से बालकों को प्रकाशमान करते हैं। महर्षि अरविन्द ने अपनी एक पुस्तक जिसका शीर्षक ‘महर्षि अरविन्द के विचार’ में शिक्षक के सम्बंध में लिखा है अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के माली होते हैं वे संस्कार की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। इटली के एक उपन्यासकार ने शिक्षक के बारे में कहा है कि शिक्षक उस मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देती है। संत कबीर ने तो गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना है। उन्होंने गुरु को ईश्वर से बड़ा मानते हुए कहा है कि
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय॥
शिक्षक (Teacher) को आदर देना समाज और राष्ट्र में उनकी कीर्ति को फैलाना केन्द्र व राज्य सरकारों का कर्तव्य ही नहीं दायित्व भी है। इस दायित्व को पूरा करने का शिक्षक दिवस एक अच्छा दिन है। गुरु से आशीर्वाद लेने की भारत की अत्यंत प्राचीन परिपाटी है। आषाढ़ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा नाम इसी के निमित्त दिया गया है। स्कूलों-कालेजों के अतिरिक्त सरकार की ओर से भी इस दिन समारोह आयोजित किये जाते हैं।
दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित एक बड़े समारोह में राजधानी के स्कूलों से चयनित श्रेष्ठ शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा स्थानीय निकायों मसलन दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद्, दिल्ली छावनी परिषद् द्वारा भी समारोह आयोजित कर अपने अधीन आने वाले स्कूलों के श्रेष्ठ शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।